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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) हाँ, मोक्ष दे रहा हो तो चलो न, हम दिन-रात क्यू में खड़े रहेंगे। ४१६ यानी आज के विषय संडास जैसे हो गए हैं। जैसे संडास के लिए खड़ा रहता है न! वैसे ही इन विषयों के लिए लाइन में खड़ा रहता है। संडास लगी कि भागा। इसे प्रेम कहेंगे ही कैसे ? प्रेम तो वह है कि विषय नहीं मिले फिर भी चिढ़ न मचे। यह तो जंगलीपन है। इसके बजाय तो साधु बनकर मोक्ष में चले जाने का विचार करना अच्छा। हम अपने गाँव ही अच्छे ! अपने गाँव स्वतंत्र तो रह सकते हैं। ऐसा तो कहीं अच्छा लगता होगा ? अहमदाबाद के सेठों को मैंने देखा है। ऑफिस में लोग हाथ जोड़ते हैं और घर पर वह क्यू में खड़ा रहता है। इसमें तो स्वमान जैसा कुछ रहा नहीं न? इसे तो सामान्य जनता कहा जाएगा। हमें तो कुदरती रूप से क्यू मिली ही नहीं। क्या क्यू हमें शोभा देती है? ! जहाँ अंदर त्रिलोक के नाथ हैं, वहाँ ? यदि कभी लगनवाला प्रेम हो तो संसार है, वर्ना फिर विषय तो संडास है। वह फिर कुदरती हाजत में गया। उसे हाजतमंद कहते हैं न? जैसे सीताजी और रामचंद्रजी विवाहित ही थे न ? सीताजी को ले गए फिर भी राम का चित्त सिर्फ सीता में ही था और सीता का चित्त सिर्फ राम में ही था । विषय तो चौदह साल तक देखा तक नहीं था, फिर भी चित्त उन्हीं में था । उसे विवाह कहते हैं। बाकी, ये तो हाजतवाले कहलाते हैं। कुदरती हाजत! शादी की, मतलब समझना कि एक शौचालय आ गया अपने पास ! यह जो शादी है, वह तो पूरा संडास है । स्त्री ने एक ही बार परपुरुष के साथ दोष किया हो तो उसे पाँच सौ - हज़ार जन्मों तक स्त्री बनना पड़ता है। विषय में फिसले तो नर्क की वेदना
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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