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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) थे। सामनेवाले किसी घर की खिड़की में एक स्त्री खड़ी होंगी, उन्होंने उसे देखा कि उनकी आँखें आकृष्ट हुई और वे तो विचारशील इंसान, इसलिए मन में लगा कि 'ऐसा क्यों हो रहा है ? ऐसा नहीं होना चाहिए ।' फिर वापस पढ़ने लगे, लेकिन फिर से आँखें आकृष्ट हुई तब उन्हें लगा कि 'यह तो बहुत गलत है।' इसलिए तुरंत वहाँ से उठकर रसोई में गए और रसोई में जाकर पिसी हुई लाल मिर्च आँखों में डाल दी। यह क्या उन्होंने अच्छा किया? वह क्या आँखों का दोष है ? किसका दोष है ? प्रश्नकर्ता : मन का दोष है। ४०४ दादाश्री : नहीं, अज्ञानता का दोष है। अज्ञान है, इसीलिए न! अब आँखों में मिर्च डालना, ऐसा उनके किसी भी शिष्य ने नहीं सीखा। शिष्य जानते थे कि गुरु महाराज इमोशनल हो गए होंगे और मिर्च डाली होगी, हमें नहीं डालनी है भाई ! आँखों में मिर्च डालने से क्या फायदा होगा ? इसके बजाय मेरी बात याद रहे तो मोह उत्पन्न ही नहीं होगा न ? और वास्तव में वैसा ही है। यह क्या कोई गप्प है ? प्रश्नकर्ता : आँखें आकृष्ट हों, लेकिन विकारी भाव नहीं हों तो ? दादाश्री : तो हर्ज नहीं । विकारी भाव अपने में नहीं हों लेकिन अगर सामनेवाले में हों तब क्या होगा ? इसलिए आकर्षण में नहीं फँसना है। जहाँ आँखें आकृष्ट हों, वहाँ से दूर रहना । अन्य कहीं, जहाँ आँखें सीधी रहें, वहाँ सब व्यवहार करना । जहाँ आँखें आकृष्ट हों, वहाँ पर जोखिम है, लाल झंडी है। अपने में विकारी भाव न हों, लेकिन सामनेवाले का क्या ? सभी जगह आकर्षण नहीं होता न ? प्रश्नकर्ता : नहीं । दादाश्री : इसलिए आकर्षण के नियम हैं कि कुछ जगहों
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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