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________________ [१८] दादा देते पुष्टि, आप्तपुत्रियों को मोह ढक देता है जागृति को जगत् जानता ही नहीं न कि यह रेशमी चादर से लपेटा हुआ है सारा ? खुद को जो पसंद नहीं है, वही कचरा इस रेशमी चादर में लपेटा हुआ है । ऐसा तुम्हें लगता है या नहीं लगता ? इतना समझे तो निरा वैराग्य ही आ जाए न? इतना भान नहीं रहता, इसीलिए तो यह जगत् ऐसा चल रहा है न ? ऐसी जागृति किसी को होगी इन बहनों में से ? कोई इंसान सुंदर दिख रहा हो, उसे छीला जाए तो क्या निकलेगा ? प्रश्नकर्ता : खून-मांस वगैरह सब निकलेगा। दादाश्री : मांस-पीप ऐसा सब ही न ? और रूप कहाँ गया फिर ? ऐसा सब सोचा नहीं है, इसीलिए यह मोह है न? ! प्रश्नकर्ता : हाँ, ऐसा ही लगता है। दादाश्री : हाँ, देखो न कैसा फँसाव! सोचो तो फँसाव जैसा नहीं लगता, बहन ? ! बुद्धि से बात सही लगती है न, कि भीतर यह सारी गंदगी है? हर एक में गंदगी होगी या कुछ साफ भी होगे, मोम जैसे ? प्रश्नकर्ता : हर एक में गंदगी है। दादाश्री : इन दादाजी में भी गंदगी है। दादाजी यानी 'दादा भगवान' वे अलग हैं और ये 'ए. एम. पटेल' अलग हैं। पटेल में
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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