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________________ अंतिम जन्म में भी ब्रह्मचर्य तो आवश्यक (खं - 2 - १७) अब तो उधार चुका दो जिसे जो कुछ भी चाहिए तो उसे हमारे वचनबल से प्राप्त हो सकता है। अभी तक हुए तमाम दोष मैं धुलवा देता हूँ। अब उधार चुका देते हों तो अच्छा है या नहीं ? फिर नये सिरे से उधार नहीं चढ़ाना, लेकिन अब तक का उधार चुका दिया तो फिर झंझट खत्म हो गया न ? नहीं तो एक बार उधार लिया कि फिर वह और भी ज़्यादा कर्जे में उतरता जाता है। क्या कहता है कि ‘होगा, इतने कंगाल हुए तो इतना और सही ! ' फिर अंतत: क्या आता है ? दुकान नीलाम हो जाती है। ३९७ वास्तव में तो यह विज्ञान ऐसा है कि आप ऐसा करो या वैसा करो' ऐसा कुछ नहीं बोल सकते, लेकिन यह तो काल ही ऐसा है ! इसलिए हमें यह कहना पड़ता है। इन जीवों के ठिकाने नहीं हैं न? यह ज्ञान लेकर बल्कि उल्टे रास्ते चल सकता है इसलिए हमें कहना पड़ता है और हमारा वचनबल है तो फिर हर्ज नहीं। हमारे वचन से करे तो उसे कर्तापद की जोखिमदारी नहीं रहेगी न! हम कहें कि 'आप ऐसा करो।' तो आपकी जोखिमदारी नहीं, और मेरी जोखिमदारी इसमें रहती नहीं ! " वह पाए परमात्म पद प्रश्नकर्ता : जब कसौटी हो, तब जो संयम का पालन करे, उसे संयम कहते हैं । जब विषय के वातावरण में आए और उसमें से निकल गया तो कह सकते हैं कि इसे संयम है। दादाश्री : लेकिन विषय तरफ के विचार कभी भी नहीं आते हों तो उसकी तो बात ही अलग है न! क्योंकि पिछले जन्म में भावना की हो तो विचार नहीं आते। हमें बाईस - बाईस साल से विषय का विचार ही नहीं आया, ज्ञान होने से पहले के दो सालों में तो विषय का विचार तक नहीं आया था । हमसे विषयविकारी संबंध नहीं हुए थे । विकारी संबंध में हमें मिथ्याभिमान
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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