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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) बनाया है और ऐसे संत पुरुष, बिना भोजन लिए जाएँ, भोजन नहीं ले रहे हैं,' तब मुझे इन लोगों से कहना पड़ता है कि आज खा लेना। हम एक टाइम खाने की आज्ञा देते हैं, ताकि उन घरवालों को दु:ख नहीं हो। हाँ, अगर दूसरी बार खाओगे तो वह नहीं चलेगा। तुम्हें इस शरीर को बहुत कष्ट नहीं देना है, नॉर्मेलिटी में रखना है। उससे देह तेजवान बनता है, प्रभावशाली बनता है। प्रश्नकर्ता : शरीर ज़रा पुष्ट बने ऐसा रखना चाहिए क्या? दादाश्री : नहीं, पुष्ट नहीं लेकिन तेजवान होना चाहिए, जो स्टेन्डर्ड वज़न है, उतना ही रखना चाहिए। रविवार का उपवास क्यों करते हैं? विषय का विरोधी बना है। विषय मेरी तरफ आए ही नहीं, इसलिए विषय का विरोधी बना, तभी से निर्विषयी हुआ। इस तरह मैं इन्हें विषय का विरोधी ही बनाता हूँ क्योंकि इनसे यों ही विषय छूट जाए, ऐसा नहीं है, ये तो सारे पके हुए फूट (ककड़ी जैसा फल) जैसे हैं, यह तो दूषमकाल के कुलबुलाते फूट है। इनसे कुछ त्यागा नहीं जा सकता, इसलिए तो दूसरे रास्ते निकालने पड़ते हैं न? अब तुझे, ऐसा लगता है न कि तू खुद ‘विषय का विरोधी है?' प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : विषय के विरोधी बन जाएँ, तो क्या रहेगा अपने पास? प्रश्नकर्ता : ब्रह्मचर्य रहेगा। दादाश्री : संयम धारण करना, वह तो बहुत बड़ी चीज़ है। यह तो 'ज्ञानी' की आज्ञा से संयम धारण होगा। नहीं तो यह मार्ग व्यवहार संयम का नहीं है, यह तो ज्ञान मार्ग है। यह तो
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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