SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 443
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९० समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) ब्रह्मचर्य, चार्ज या डिस्चार्ज ? प्रश्नकर्ता : ये जो सभी ब्रह्मचारी होंगे, वे 'डिस्चार्ज' में ही माने जाएँगे न? दादाश्री : हाँ, डिस्चार्ज में ही ! लेकिन इस डिस्चार्ज के साथ उनका भाव है, भीतर वह चार्ज है । है डिस्चार्ज, लेकिन उसके भीतर का जो भाव है, वह चार्ज है और भाव होगा तभी मज़बूती रहेगी न! वर्ना डिस्चार्ज हमेशा ही ढीला पड़ जाता है । और यह जो उसका भाव है कि मुझे ब्रह्मचर्य पालन करना ही है, उससे मज़बूती रहती है। इस अक्रममार्ग में कर्ताभाव कितना है, कितने अंश तक है कि हमने जो आज्ञा दी है न, उस आज्ञा का पालन करना, उतना ही कर्ताभाव। किसी न किसी चीज़ का पालन करना ही पड़ता है, वहीं पर उसका कर्ताभाव है। अतः उसके इस निश्चय में कि 'ब्रह्मचर्य का पालन करना ही है,' तो इसमें 'पालन करना, ' वह कर्ताभाव है। बाकी ब्रह्मचर्य, वह तो डिस्चार्ज चीज़ है । प्रश्नकर्ता : लेकिन ब्रह्मचर्य पालन करना, वह क्या कर्ताभाव है ? दादाश्री : हाँ, पालन करना, वह कर्ताभाव है, और इस कर्ताभाव के फल स्वरूप उन्हें अगले जन्म में सम्यक पुण्य मिलेगा । यानी क्या कि ज़रा सी भी मुश्किल के बिना सभी चीजें सामने से आ मिलेंगी और ऐसा करते-करते मोक्ष में जाएँगे । तीर्थंकरों के दर्शन होंगे और तीर्थंकरों के पास पड़े रहने का अवसर भी मिलेगा । मतलब उसके सभी संयोग बहुत सुंदर होंगे। यह हमारी साइन्टिफिक खोज है, बहुत सुंदर खोज है! लेकिन अनादि की बुरी आदत जाती नहीं, इसलिए हमें यह रखना पड़ता है कि 'ब्रह्मचर्य पालन करो।' बाकी, अगर शादी करनी हो तो ज्ञानीपुरुष की आज्ञा लेकर
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy