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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) में 'व्यवस्थित' ऐसा भी आ जाए कि शादी कर ले। अतः यह 'व्यवस्थित' छोड़ता नहीं है। मेरे पास चारों ओर का हिसाब है। इसलिए ऐसा कोई डर मत रखना । 'व्यवस्थित' पर छोड़ दो न ! 'व्यवस्थित' से बाहर कुछ भी नहीं होनेवाला, इतना तो तुम्हें भरोसा है न? 'व्यवस्थित' पर थोड़ा बहुत तो भरोसा हुआ है न ? प्रश्नकर्ता: पूरी तरह से । दादाश्री : अपने मार्ग में आश्रम जैसी किसी चीज़ की ज़रूरत ही नहीं है। लेकिन क्योंकि ये ब्रह्मचारी बने हैं, इसलिए इन्हें ज़रूरत है। बाकी अपने ज्ञान में तो भवन की भी ज़रूरत नहीं और किसी की भी ज़रूरत नहीं है । जहाँ हो, वहीं पर सत्संग कर लें और न हो तो बाहर बगीचे में पेड़ के नीचे सत्संग कर लें। लेकिन ये तो ब्रह्मचर्य पालन करनेवाले बने, इसलिए यह प्रश्न हुआ कि, 'ब्रह्मचर्य पालन करना', घर में रहकर कोई उसका पालन नहीं कर सकता। वह तो ब्रह्मचारियों का गुट अलग ही होना चाहिए । प्रश्नकर्ता : उन्हें वातावरण की ज़रूरत है ? ३६२ दादाश्री : हाँ, वातावरण की ही ज़रूरत है। वातावरण से ही ब्रह्मचर्य पालन किया जा सकता है और अब्रह्मचर्य का मुख्य कारण भी वातावरण ही है। बाकी आत्मा वैसा नहीं है, यह तो सब वातावरण का असर है। इसलिए ब्रह्मचर्य साइकोलॉजिकल इफेक्ट है और अब्रह्मचर्य भी साइकोलॉजिकल इफेक्ट है लेकिन अब्रह्मचर्य का साइकोलॉजिकल इफेक्ट बहुत काल से गाढ़ हो गया है, इसलिए उसे पता नहीं चलता कि यह साइकोलॉजिकल इफेक्ट है। ब्रह्मचर्य के बिना नहीं जा सकते मोक्ष में कभी आज से चालीस साल पहले, मुझे एक अविवाहित इंसान मिले थे, उन्हें कोई औरत नहीं मिली थी। पहले ऐसा ज़माना था कि अविवाहित भी मिलते थे। तो मैंने उनसे पूछा कि, 'विषय में सुख है क्या?' तब कहने लगे कि, 'उसके जैसा सुख कहीं
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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