SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फिसलनेवालों को उठाकर दौड़ाते हैं (खं - 2-१६) तुम्हें तो ऐसा तय करना है कि 'फिसल नहीं जाना है' और यदि फिसल गए तो फिर मुझे माफ कर देना है। आपका कभी अगर अंदर बिगड़ने लगे तो तुरंत मुझे बताना । ताकि फिर उसका कुछ हल निकले! थोड़े ही कहीं एकदम से सुधरनेवाला है? बिगड़ने की संभावना है! ये नए मकान बनाते हैं, तो उनमें डिफेक्ट निकलता है या नहीं? मेरे जैसे को कुछ काम करना रहा नहीं, तो गलती निकलेगी ही नहीं न? जो लोग काम करते हैं, उन्हीं से गलती होती है। खराब से खराब काम हो गया हो तो 'दादाजी' को बता देना। तो मन समझेगा कि, 'यह तो भोला है, यह सबकुछ बता देता है। इसलिए अब हमें फिर से ऐसा नहीं करना है। इसके साथ अपनी नहीं बनेगी।' इसलिए फिर मन बचाव का रास्ता नहीं ढूँढेगा। मैं तो पहले जो भी होता था वह 'ओपन' कर देता था । तो मन को कैसा लगेगा अंदर ? उलझता रहेगा, और तय करेगा कि फिर से हमें ऐसा नहीं करना है। ३३५ प्रश्नकर्ता : 'यह तो अपनी ही आबरू खत्म कर रहा है' ऐसा कहकर फिर मन चुप हो जाएगा । दादाश्री : हाँ, मन समझ जाएगा कि 'यह तो अपनी आबरू खत्म कर रहा है।' बाहर के लोग तो ऐसा समझते हैं कि खुद की आबरू जा रही है। जबकि हम तो जानते हैं कि यह तो मन की आबरू जा रही है ! जो करता है, उसकी आबरू जाती है। ‘अपनी' आबरू क्यों जाएगी ? ऐसा कहने से मन शांत हो जाएगा या नहीं? हमेशा हमारी दी गई आज्ञा में रहना ही अच्छा है। जिसने खुद के लेवल पर लिया, वह स्वच्छंद पर ले जाता है। इस स्वच्छंद ने ही लोगों को गिरा दिया है न! इसीलिए हम ये आज्ञा देते हैं न?! स्वच्छंद सबसे बड़ा रोग कहलाता है कि, 4 'अब मुझे कुछ भी बाधक नहीं है।' वही विष है। जानो गुनाह के फल को पहले प्रश्नकर्ता : 'यह कार्य गलत है, यह करने जैसा नहीं है।'
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy