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________________ ३२८ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) है और इस ओर छेदन हो जाता है, वापस आता है, वापस छेदन कर देते हैं। मतलब यह खुद की पकड़ नहीं छोड़ता लेकिन वे विचार भी चलते रहते हैं, दोनों आमने-सामने चलते रहते हैं। दादाश्री : वह छोड़ेगा नहीं न! इसलिए पहले विचार को ही निकालकर फेंक देना। बाद में कोई जाप करने बैठ जाना, 'दादा भगवान को नमस्कार करता हूँ', ऐसा-वैसा करना, भजन गाने लगना, ये जाप ही है सारे। अंदर से कहना कि, 'चंद्रेशभाई, गाओ'। ज्ञान तो बोलता ही रहेगा, बेचारा। वह ज्ञान तो जागृत ही करता रहता है कि जागो, जागो, जागो! अंदर से ऐसा नहीं करता? प्रश्नकर्ता : हाँ, बहुत करता है, उसके प्रताप से ही तो सब टिका हुआ है। दादाश्री : अब बाहर के लोग कैसे टिक सकेंगे बेचारे? ज्ञान नहीं हो तो कैसे टिकेंगे? नहीं टिक सकेंगे। उन्हें तो प्रकृति जैसे ले जाए, वैसे घिसटते जाते हैं। जहाँ जागृति में झोंका, वहाँ विषय की फटकार प्रश्नकर्ता : इस ज्ञान की जागृति से प्रकृति के सामने बहुत बड़ा फोर्स खड़ा हो गया है। दादाश्री : हाँ। यह ज्ञान है इसलिए प्रकृति के सामने जीत ज़रूर जाता है, लेकिन साथ ही साथ अपना जो अस्तित्व है, वह ज्ञान के साथ होना चाहिए। अस्तित्व अगर पुद्गल के साथ रहेगा तो खत्म कर देगा। यानी स्वपरिणामी होना चाहिए। उन विचारों में मिठास लगे तो हो गया, वे फिर खत्म कर देंगे। क्योंकि उस ओर परपरिणाम हुए। अब वे विचार ऐसे होते हैं न कि मिठास आए? या कड़वाहट आती है? प्रश्नकर्ता : मिठास आए ऐसे आते हैं। दादाश्री : इसीलिए वहाँ सावधान रहना है! ऐसा विवेचन
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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