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________________ ३०८ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) हाथ के कड़े निकाल लें, उसके जैसा है। बेर की लालच में बच्चा फँस जाता है और कड़े दे देता है, इस तरह जगत् लालच में फँसा हुआ है। ब्रह्मचर्य व्रत लेने के बाद आनंद बहुत बढ़ गया है न? अव्रत की वजह से ही यह सारा झंझट खड़ा हुआ है? इससे आत्मा के यर्थाथ स्वाद का पता नहीं चलता। महाव्रत का आनंद तो अलग ही है न! उसके बाद तो आनंद बहुत बढ़ जाता है, बेहद आनंद होता है! फायदा उठाएँ या नुकसान रोकें ? प्रश्नकर्ता : विषय से मुक्त हुआ कब कहलाएगा? दादाश्री : उसे फिर विषय का एक भी विचार नहीं आए। विषय से संबंधित कोई भी विचार नहीं, दृष्टि नहीं, वह लाइन ही नहीं। जैसे वह जानता ही नहीं हो, ऐसे रहता है, वह ब्रह्मचर्य कहलाएगा। प्रश्नकर्ता : जैसे बाल्यावस्था होती है, वैसा? दादाश्री : नहीं, जैसे किसी चीज़ से आप अंजान हों, उसका विचार आपको नहीं आया हो, उसके जैसा होता है। जिसने कभी भी मांसाहार खाया ही नहीं हो तो उसे मांसाहार के विचार ही नहीं आते। उस ओर दृष्टि ही नहीं होती और उस ओर का कुछ भी नहीं होता। प्रश्नकर्ता : हमारी वह दशा कब आएगी? दादाश्री : कब आएगी, वह नहीं देखना है! चलते रहो न तो अपने आप गाँव आ जाएगा। चलते रहने से गाँव आता है, बैठे रहने से नहीं आता। रास्ता ज्ञानीपुरुष ने बता दिया है और वह रास्ता तूने पकड़ लिया है। अब कब आएगा ऐसा कहने से
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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