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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) दादाश्री : तुम्हारा चित्त जितना किसी में चिपके उतना ही अंदर अपने आप डिस्चार्ज हो जाता है, फिर वह निकल जाता है। जो मृत हो जाता है, वह निकल जाता है। जो मृत नहीं होता, वह नहीं निकलता। २९० प्रश्नकर्ता : नहीं। उसका मतलब क्या यह हुआ कि अभी भी कहीं पर चित्त चिपकता है । दादाश्री : हं, चिपका नहीं। अंदर चिपकता होगा थोड़ा बहुत, उसका फल है। चिपकने के बाद यह सब उखाड़ लो, यों प्रतिक्रमण करके। थोड़ा चिपक जाता है न ? यानी चिपक जाए तो नियम ऐसा है कि अंदर वह तुरंत अलग हो जाता है और फिर मृत हो जाता है। वह तो अंदर रहता है, उसके बजाय अगर निकल जाए तो उसमें परेशान मत होना । प्रश्नकर्ता : तो ऐसा समझना है कि यदि चित्त का चिपकना कम हो जाए तो डिस्चार्ज होने का जो गेप है, वह बढ़ता जाएगा ? दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं । डिस्चार्ज का गेप बढ़ा होगा तो वह वापस कम भी हो सकता है, थोड़े दिनो बाद। इंसान का संडास जाना और डिस्चार्ज होना, इनमें अंतर नहीं है। प्रश्नकर्ता : तंदुरस्त इंसान को डिस्चार्ज होता है, अपने आप ऑटॉमैटिक कुछ समय पर होता है 1 दादाश्री : होता है। पुद्गल संडास गया, उसे ऐसा कहेंगे तो राह पर आ जाएगा। इस शरीर में से जो कुछ भी निकलता है, वह सब संडास ही कहलाता है। नाक में से निकले, कहीं से भी निकले, वह संडास ही कहलाता है। प्रश्नकर्ता : तो इसे नुकसान हुआ, ऐसा ही कहेंगे न ? दादाश्री : नुकसान तो डिस्चार्ज होने से पहले से ही हो गया है। अंदर अलग हो जाता है, तभी से नुकसान है। अब फायदे
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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