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________________ २८२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) लटका सकते। फिर गाय को भी नहीं देख सकते, गाय स्त्री है इसलिए। अब इसका अंत कब आएगा? शास्त्रकारों ने तो बहुत बारीक बुना है जबकि हमें तो दरियाँ बनानी हैं। इसलिए अब मोटा-मोटा बुनो न! फिर भी हमें कैसा आनंद-आनंद रहता है! वहाँ तो कभी भी आनंद ही नहीं रहता और ऐसा बारीक बुनने में बेचारा उलझ जाता है। हाँ, नहाने की उन लोगों की बात मैं एक्सेप्ट करता हूँ। नहाना नहीं, खाना, ब्रश नहीं करना, वह सब एक्सेपट करता हूँ। नहाना नहीं चाहिए क्योंकि नहाने से शरीर की सभी इन्द्रियाँ सतेज हो जाती हैं। जीभ साफ की कि ये सब जलेबी-पकोड़े भाएँगे और नहीं की हो तो स्वाद में 'राम तेरी माया!' स्वाद कम पता चलता है। प्रश्नकर्ता : ये साधु गीले कपड़े से शरीर पोंछ लेते हैं। दादाश्री : वह तो करना ही पड़ेगा न! प्रश्नकर्ता : उससे इन्द्रिय सतेज नहीं होती? दादाश्री : नहीं। प्रश्नकर्ता : गरम या ठंडा पानी हो तो क्या उससे फर्क पड़ता है? दादाश्री : उसमें कुछ खास फर्क नहीं पड़ता। गरम पानी अंदर ठंडक करता है और ठंडा पानी अंदर गर्मी करता है। उसका स्वभाव अंदर बदलाव लाने का, बाकी सब एक सा ही है। निरोगी से भागे विषय आप परिणाम को बाहर ढूँढ रहे हो, लेकिन जो निरोगी होता है, उसका परिणाम हमेशा ही जल्दी पता चलता है। ये सब प्रमाण है! शरीर निरोगी हो तो ब्रह्मचर्य अच्छा रहता है। अब्रह्मचर्य शरीर के रोगों की वजह से ही रहता है। जितना रोग कम, उतना विषय कम। दुबले इंसान में विषय अधिक होता है और मोटे इंसान में विषय कम होता है।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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