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________________ २६६ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) जिसे ब्रह्मचर्य पालन करना है, उसे माल-मलीदा नहीं खाना चाहिए। अगर खाना ही हो तो थोड़ा खाना कि भूख ही उसे खा जाए। माल-मलीदा खाते हैं तो वापस साथ में दाल-चावल चाहिए, सब्जी चाहिए तब फिर भूख उसे नहीं खाती। खराब विकारों के आने का कारण यही है। उससे विकारी भाव उत्पन्न होते हैं। भूख खा जाए, तब तक विकारी भाव उत्पन्न नहीं होते। भूख न खाए, तब प्रमाद होता है। प्रमाद होता है इसलिए विकार होता है। प्रमाद यानी आलस नहीं, लेकिन विकार! पुद्गल ऐसी चीज़ है जो परेशान करती है, वह अपना पड़ोसी है। पुद्गल अगर वीर्यवान हो, तब परेशान नहीं करता या फिर अगर बिल्कुल ही कम आहार लें, जीने लायक ही आहार लें, तब पुद्गल परेशान नहीं करता। आहार की वजह से तो ब्रह्मचर्य अटका हुआ है। आहार के बारे में जागृत रहना चाहिए। दिया जलता रहे, उतना ही खाना चाहिए। भोजन तो ऐसा लेना चाहिए कि नशा न चढ़े और नींद ऐसी होनी चाहिए कि भीड़ में बैठे हों और इधर नहीं खिसक सकें, उधर नहीं खिसक सकें, ऐसी भीड़ में बैठे-बैठे भी नींद आ जाए। वास्तव में नींद वही है। यह तो भोजन का नशा चढ़ता है, उससे फिर नींद आती है। खाना खाने के बाद विधि करके देखना, सामायिक करके देखना। होती है? ठीक से नहीं हो पाती। नहाना भी है, निमंत्रण नुकसान को नहाने से सभी विषय जागृत हो जाते हैं। ये नहाना-धोना किसके लिए है? विषयी लोगों के लिए ही नहाने की ज़रूरत है, बाकी तो ज़रा कपड़ा गीला करके यों पोंछ लेना चाहिए। जो अन्य आहार नहीं खाते, उसके शरीर से बिल्कुल दुर्गंध नहीं आती। महीने से सिकनेस हो तो फिर विकार रहता है? प्रश्नकर्ता : तो नहीं रहता।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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