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________________ विषयी आचरण? तो डिसमिस (खं - 2 -१०) २३९ तो जगत् के लोगों के पास है । प्रताप तो, चेहरे पर तेज रहता है, ऐसे ब्रह्मचर्य भी अच्छा, शरीर बलवान होता है, वाणी ऐसी प्रतापवान, व्यवहार ऐसा प्रतापवान । प्रताप तो होता है संसार में, लेकिन सौम्यता का ताप नहीं होता किसी के पास । अब ये दोनों साथ में हों, तब जाकर काम होता है। सूर्य-चंद्र के दोनों गुण । सिर्फ प्रतापी पुरुष होते हैं, लेकिन कुछ ही, ज़्यादा तो इस दूषमकाल में होते ही नहीं हैं न ! प्रश्नकर्ता: और अपना यह ज्ञान ही ऐसा है कि अंदर से ही यों ज़ोर लगाकर सावधान करता रहता है। दादाश्री : हाँ, वह ज़ोर लगाता है। प्रश्नकर्ता : यानी थोड़ा सा भी कुछ इधर-उधर हो जाए न, तो अंदर शोर मच जाता है कि 'यहाँ चूके, वापस लौटो यहाँ से।' मतलब अंदर सेफ की तरफ ही पूरा खींच लाता है हमें । दादाश्री : हारने लगो तो मुझे बता देना। एक ही जन्म यदि अपवित्र नहीं हुआ तो मोक्ष हो जाएगा, हरी झंडी। अगर शादी कर लो तो भी हर्ज नहीं है । तब भी मोक्ष में दिक्कत नहीं आएगी। प्रश्नकर्ता : हम इच्छापूर्वक किसी को छूएँ तो वह वर्तन में आया ऐसा कहा जाएगा न ? दादाश्री : इच्छापूर्वक छूना ? तब तो वर्तन में ही आया कहलाएगा न। इच्छापूर्वक अंगारों को छूकर देखना न ? ! प्रश्नकर्ता: समझ गया । दादाश्री : उसके बाद अगर आगे की इच्छा तो, इच्छा होते ही वहाँ से निकाल ही देना चाहिए जड़ से, उगते ही, बीज उगते ही जान जाओ कि यह कौन सा बीज उग रहा है ? तो वह है विषय का । तो तोड़कर निकाल देना है। वर्ना उसे छूते ही आनंद हुआ, तब तो फिर खत्म हो गया । वह जीवन ही नहीं
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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