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________________ २३६ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) सब तो आनंद में आ गए। सभी के चेहरे पर नया ही तेज आ गया है। एक ही दीवार पार करे तो आनंद की शुरूआत हो जाती है और प्रकट हो जाता है तुरंत ही और अगर पार नहीं की और फिसल गया तो वहाँ पर फिर गाढ़ हो जाता है। फिर वापस उल्टा हो जाता है इसलिए कसौटी के टाइम पर संभाल लेना। पाताल फूटकर फिर आनंद उभरता रहता है! अन्य कुछ भी हो जाए तो परेशानी नहीं है। संग संयोगी नहीं बन जाना चाहिए। बाकी कुछ हो जाए तो उसमें हर्ज नहीं है, उसका अर्थ ऐसा है कि वैसा हो तो बहुत हुआ इतनी फिक्र करने जैसा नहीं है लेकिन संयोग तो मृत्यु है। स्त्री-पुरुष का संयोग, वह तो मृत्यु ही है, तुम लोगों के लिए ऐसा ही है। प्रश्नकर्ता : यानी कि मर जाएँ लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए। दादाश्री : नहीं, वह मृत्यु ही है। यों ही मृत्यु हो गई क्योंकि जो आनंद प्रकट होनेवाला था, उसी समय फिसल गए। जैसे कि उपवास किया हो, तो थोड़े समय के बाद अंदर अच्छा हो जानेवाला होता है, लेकिन उससे पहले ही खा लेता है! इसलिए सावधान रहना। वर्ना फिर से यह भूमिका नहीं मिलेगी। ऐसी भूमिका किसी काल में मिलनेवाली नहीं है इसलिए सावधान रहना। यह सब बिल्कुल भी चूकना मत और बहुत बड़ा हमला हो तो मुझे खबर कर देना और इसके अलावा कुछ और हो तो वह सब बताने की कोई ज़रूरत नहीं है। वह सब यूज़लेस! स्त्री-पुरुष का संयोग नहीं होना चाहिए। बस इतना ही। बाकी सब को तो मैं लेट गो कर लूँगा। प्रश्नकर्ता : यानी उसके जितना जोखिम नहीं है, बाकी सब में? दादाश्री : नहीं, जोखिम नहीं। सबसे बड़ा जोखिम यही है। यह तो आत्महत्या ही है। उसमें तो पट्टी लगा सकते हैं, उसकी दवाई है।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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