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________________ २३४ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) नहीं शोभा देता वह प्रश्नकर्ता : अभी भी ऐसे विचार और ऐसा क्यों हो जाता दादाश्री : अंदर विचार ही भरे पड़े हैं। वे तो निकलेंगे, लेकिन आचरण में नहीं आना चाहिए। आचरण में आ गया तो बिल्कुल बंद फिर। हमेशा के लिए बंद कर देते हैं हम। ऐसे अपवित्र इंसान यहाँ चलेंगे नहीं न? विचार आएँ तो उन्हें देखनेवाले तुम हो। प्रश्नकर्ता : वह तो ठीक है, सत्संग में तो ऐसा चलेगा ही नहीं। दादाश्री : नहीं। नहीं चलेगा। यह तो बहुत पवित्र जगह है, यहाँ तो कभी ऐसा हुआ ही नहीं है। ऐसों का आना तो हमेशा के लिए बंद ही कर देना चाहिए। कोई इतना विकारी होगा तभी ऐसा हो सकता है! आपको तो विचार आते ही तुरंत उसी समय देख लेना चाहिए। नहीं देख पाओ तो उसका पश्चाताप करना कि यह देख नहीं पाया इसलिए उसका पश्चाताप करता हूँ और अब तो सख्त कदम ही उठाना है, भले ही कोई भी हो लेकिन उसका आना बंद कर देना चाहिए। ऐसी पवित्र जगह! बाकी आचरण में ऐसा हो उसे, पहले एक-दो का आना बंद कर दिया था, तो देखो न अभी तक हमेशा के लिए आ ही नहीं पाते। मुँह भी नहीं दिखाते हैं न!! पहले जो कुछ हो गया हो, यहाँ पर उस भूल को स्वीकार करना है, नये सिरे से तो होनी ही नहीं चाहिए न! अब इतना देखना है कि आचरण में नहीं आए। आचरण में कभी-भी नहीं आए और जो आचरण में आए, उसे हम यहाँ एडमिट नहीं करते। इसलिए अपवित्र विचार आएँ तो खोदकर निकाल देना, विचार
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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