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________________ स्पर्श सुख की भ्रामक मान्यता (खं-2-८) २१३ हो चुका हूँ।' मन में भले ही कैसे भी खराब विचार आएँ लेकिन उसमें हर्ज नहीं है, लेकिन चित्त का हरण तो होना ही नहीं चाहिए। भटकती वृत्तियाँ चित्त की चित्त वृत्तियाँ जितनी भटकेंगी, उतना ही आत्मा को भटकना पड़ेगा। चित्त वृत्ति जिस जगह जाएगी, उसी जगह आपको भी जाना पड़ेगा। चित्त वृत्ति नक्शा बना देती है। अगले जन्म के लिए आनेजाने का नक्शा बना देती है। फिर उस नक्शे के अनुसार हमें घूमना पड़ता है, तो कहाँ-कहाँ घूम आती होंगी चित्त वृत्तियाँ ? प्रश्नकर्ता : लेकिन चित्त भटके तो उसमें हर्ज क्या है? दादाश्री : चित्त जैसी प्लानिंग (योजना) करेगा, उस अनुसार हमें भटकना पड़ेगा। इसलिए ज़िम्मेदारी अपनी है, जितना भी भटकता रहेगा उसकी! चित्त चेतन है, वह जहाँ-जहाँ चिपका, वहाँ-वहाँ भटकते, भटकते, भटकते ही रहना पड़ेगा! प्रश्नकर्ता : चित्त हर कहीं नहीं चिपक जाता, लेकिन अगर एक जगह चिपक जाए तो क्या वह पहले का हिसाब है? दादाश्री : हाँ, हिसाब है तभी चिपकता है। लेकिन अब हमें क्या करना चाहिए? पुरुषार्थ वह कि जहाँ हिसाब हो वहाँ पर भी नहीं चिपकने दे। चित्त जाए लेकिन धो दिया तो, तब तक वह अब्रह्मचर्य नहीं माना जाता। लेकिन अगर चित्त जाए और धोए नहीं तो वह अब्रह्मचर्य कहलाता है। इसीलिए कहा है न, 'इसलिए सावधान रहना मन-बुद्धि, निर्मल रहना चित्तशुद्धि।' मनबुद्धि को सावधान करते हैं। अब हमें चित्तवृत्ति निर्मल रखने के लिए क्या करना पड़ेगा? आज्ञा में रहना पड़ेगा। हमारा चित्त संपूर्णत: शुद्ध रहता है, इसलिए फिर कुछ छूता भी नहीं है और बाधा
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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