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________________ स्पर्श सुख की भ्रामक मान्यता (खं-2-८) २०५ दादाश्री : रहा जा सकता है लेकिन उनकी अलग टोली हो, उसकी बात ही अलग है! प्रश्नकर्ता : इस वातावरण में हो, तब तक सतर्कता रखना ताकि परीक्षा तो हो जाए न? दादाश्री : सचमुच का टेस्ट होगा लेकिन अपना ज्ञान ऐसा है कि ज़रा सा आकर्षण हो जाए तो यों बीज पड़ा कि उखाड़कर फेंक देता है, तुरंत! फिर प्रतिक्रमण कर देता है, तुरंत ही। अपना विज्ञान इतना सुंदर है। जहाँ आकर्षण है, वहाँ जोखिम समझ स्त्री या विषय में रमणता की जाए, ध्यान किया जाए, निदिध्यासन किया जाए तो वह गाँठ पड़ जाएगी, विषय की। फिर कैसे खत्म होगी वह? तो वह यह कि, विषय विरुद्ध विचारों से खत्म हो जाएगी। इंसान केवल एक इतना ही संभाल ले तो कोई भी विषय-आकर्षण हो जाए तो अगर वहाँ पर तुरंत ही प्रतिक्रमण कर ले तो आगे उसका खाता बिल्कुल साफ रहेगा। ज़रा दो मिनट भी देर कर दे तो फिर उग निकलेगा। अतः यह तो प्रतिक्रमण से बंद होगा वर्ना यह तो बंद ही नहीं होगा न! फिर भी अगर पतन हो जाए तो जोखिमदारी नहीं रहेगी। लेकिन जहाँ पर भान ही नहीं रहे, वहाँ पर फिर आकर्षण हुआ तो फिर वहाँ सबकुछ ज्यों का त्यों पड़ा रहेगा। अतः देखते ही आकर्षण हो जाए, उसी के साथ उसका आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान और खराब विचारों को काटे तो बच सकेंगे, वर्ना कोई बचेगा ही नहीं इससे। यानी बहुत गहरा गड्ढा है यह तो। यह आकर्षण क्यों होता है कि पहले की अज्ञानता से। हमें समझ नहीं थी इसलिए उसके साथ रमणता की थी, इसलिए फिर से आकर्षण खड़ा हो जाता है। अतः हमें समझ जाना चाहिए कि अब इसका कुछ हिसाब है।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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