SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) तो उसमें हर्ज नहीं। दूसरे लोगों को उपदेश देना, वगैरह नहीं हो तो उसमें हर्ज नहीं है। उनके जो सिद्धांत हैं, उनकी सेफ साइड में रह सके। प्रश्नकर्ता : यानी ब्रह्मचर्य का सिद्धांत? दादाश्री : सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं, हर तरह का सिद्धांत। किसी के साथ कषाय नहीं हो। किसी के साथ कषाय करना, वह गुनाह है। ज्ञान मिलने के बाद कषाय करना शोभा ही नहीं देता न! ब्रह्मचर्य और कषाय का अभाव। प्रश्नकर्ता : सेफ साइड की बाउन्ड्री कौन सी? दादाश्री : सामनेवाला व्यक्ति हमें अलग माने और हम उसे एक मानें। वह हमें अलग मान सकता है, क्योंकि वह बुद्धि के अधीन है, इसलिए। अलग मानते हैं न? हममें बुद्धि नहीं होनी चाहिए ताकि एकता लगे, अभेदता! प्रश्नकर्ता : सामनेवाला भेद ही डालता रहे तब? दादाश्री : वह तो बल्कि अच्छा है। उसमें बुद्धि है, इसलिए वह और क्या कर सकता है? उसके पास जो हथियार है, वही इस्तेमाल करेगा न?! प्रश्नकर्ता : तो हमें कैसे अभेदता रखनी है उसके साथ? दादाश्री : लेकिन वह जो कुछ कर रहा है, वह तो परवश होकर कर रहा है न बेचारा! और उसमें वह दोषित कहाँ है? वह तो करुणा रखने जैसे हैं। प्रश्नकर्ता : उस पर थोड़ी देर करुणा रहती है। फिर ऐसा लगता है कि, 'इस पर तो करुणा रखने जैसा भी नहीं है।' ऐसा होता है। दादाश्री : ओहो! ऐसा तो कह ही नहीं सकते। ऐसा अभिप्राय
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy