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________________ नहीं चलना चाहिए, मन के कहे अनुसार (खं-2-५) १६५ प्रश्नकर्ता : मुझे अंदर ऐसा तो है ही कि ज्ञानीपुरुष के सत्संग में ही पड़े रहना है। दादाश्री : वह सब ठीक है। मन ऐसे अभिप्रायवाला हो जाए तो अच्छा है, लेकिन मन जब विरोध करेगा, उस समय तुझे डूबा देगा। ___ नहीं चलेगा वेवरिंग माइन्ड इसमें... अपना आज का ज्ञान ब्रह्मचर्य पालन करने का हो और पिछला ज्ञान ब्रह्मचर्य पालन में सहमत रहता है। छः महीने बाद वापस नई ही तरह का बोलता है कि 'शादी करनी चाहिए'। इस प्रकार, मन की स्थिति कभी भी एक समान नहीं रहती, डाँवाडोल होती है, विरोधाभासवाली होती है। प्रश्नकर्ता : छः महीने बाद मन शादी का बताता है, अलगअलग बताता है। तो यदि ऐसा कुछ वक्त ज्ञान में बीत जाए तो फिर मन एक जैसा बताने लगेगा न? फिर उल्टा-सीधा बताना बंद नहीं हो जाएगा? दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं होता। बूढ़ा हो जाए फिर भी शादी करने का कह सकता है! खुद मन से कहता भी है कि 'अब उम्र हो गई, चुप बैठ!' अतः मन का ठिकाना नहीं है। ऐसा समझकर मन में तन्मयाकार होना ही नहीं है। अपने अभिप्राय को माफिक आए, उतना मन एक्सेप्टेड। जहाँ सिद्धांत है ब्रह्मचर्य का... प्रश्नकर्ता : इसमें हम सिद्धांत किसे कहेंगे? दादाश्री : हमने जो तय किया हो कि भई, हमें ब्रह्मचर्य पालन करना है। तो फिर क्या मन की सुननी चाहिए? प्रश्नकर्ता : फिर उस बारे में सुननी ही नहीं है।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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