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________________ १५८ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) जा रही हो तो अर्थ ही नहीं है न! निश्चयबल है नहीं। खुद का कुछ है नहीं। खुद की कोई काबिलियत है नहीं। तुझे क्या लगता है ? गाड़ी जाने देनी चाहिए? प्रश्नकर्ता : नहीं जाने देनी चाहिए। दादाश्री : तो क्यों ये गाड़ियाँ जा रही हैं? प्रश्नकर्ता : आप बताते हैं न तब पता चलता है कि यह मन के कहे अनुसार किया था। वर्ना पता ही नहीं चलता। दादाश्री : हाँ, लेकिन पता चलने के बाद समझ जाएगा या नहीं? प्रश्नकर्ता : समझ जाता है। दादाश्री : अब वापस परसों आप ऐसा कहोगे कि, 'मुझे भीतर से ऐसा लगा, इसलिए उठ गया सामायिक करते करते!' प्रश्नकर्ता : सामायिक करने बैठते हैं तो मज़ा नहीं आता। दादाश्री : मज़ा नहीं आ रहा हो तो उसमें हर्ज नहीं। लेकिन मन के कहे अनुसार करे तो, वह नहीं चला सकते। प्रश्नकर्ता : लेकिन मज़ा नहीं आता, इसलिए ऐसा लगता है कि अब नहीं बैठना है। दादाश्री : लेकिन यों 'मन के कहे अनुसार चलना है' ऐसी इच्छा नहीं है न तेरी? प्रश्नकर्ता : ऐसा तो अब पता चला न! दादाश्री : मज़ा नहीं आता, वह अलग बात है। मज़ा तो, हम समझते हैं कि इसे इन्टरेस्ट(रस) कहीं और है, इसमें इन्टरेस्ट कम है। इन्टरेस्ट तो हम ला देंगे। प्रश्नकर्ता : मज़ा नहीं आता इसलिए मन बताता है कि 'अब जाना है।'
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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