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________________ आवश्यक कहा गया है। आयुर्वेद भी ऐसा ही सूचित करता है! छ: महीने ही यदि मन-वचन और काया से ब्रह्मचर्य पालन करे तो मनोबल, वचनबल एवं देह में भी ज़बरदस्त बदलाव हो जाते हैं! अब्रह्मचर्य से बहुत सारे रोग उत्पन्न होते हैं। उसमें तो मन और चित फ्रैक्चर हो जाते हैं! कई मानसशास्त्री कहते हैं कि विषय बंद हो ही नहीं सकता। अंत तक! लेकिन दादाश्री क्या कहते हैं, कि विषय के अभिप्राय बदल जाएँ तो फिर विषय रहता ही नहीं। जब तक अभिप्राय नहीं बदल जाते, तब तक वीर्य का ऊर्ध्वगमन होता ही नहीं है। अक्रममार्ग में तो डायरेक्ट आत्मज्ञान प्राप्त होता है, वही ऊर्ध्वगमन है! ज्ञानीपुरुष संपूर्ण निर्विषयी हो चुके होते हैं, इसलिए उनमें ज़बरदस्त वचनबल प्रकट हो चुका होता है, जो विषय का विरेचन करवा देता है। जो विषय का विरेचन नहीं करवाएँ, तो वह 'ज्ञानीपुरुष' है ही नहीं। सामनेवाले की इच्छा होनी चाहिए। खंड - २ 'शादी नहीं करने' के निश्चयवालों के लिए राह १. किस समझ से विषय में से छूटा जा सकता है? अक्रम विज्ञान थोडे ही समय में ब्रह्मचर्य में सेफ साइड करवा देता है। कौन से जन्म में अब्रह्मचर्य का अनुभव नहीं किया है ? कुत्ता, बिल्ली, पशु, पक्षी, मनुष्य, सभी ने कब नहीं किया? सिर्फ इस एक जन्म में ब्रह्मचर्य का अनुभव तो करके देखो! उसकी खुमारी, उसकी मुक्तता, निर्बोझता महसूस तो करके देखो! ब्रह्मचर्य का निश्चय होना, वही बहुत बड़ी चीज़ है! ब्रह्मचर्य के दृढ़ निश्चयी का दुनिया में कोई नाम देनेवाला नहीं है! ब्रह्मचर्य का निश्चय देखा देखी, जोश में आकर या डर के मारे होगा तो उसमें दम नहीं होगा! वह कभी भी फिसलाकर गिरा सकता है। समझ से और मोक्ष के ध्येय के लिए करना है और उस निश्चय को 20
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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