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________________ नहीं चलना चाहिए, मन के कहे अनुसार (खं-2-५) १५१ __ वर्ना मन हो जाए ढीला प्रश्नकर्ता : हमने नियम लिया हो कि दो ही रोटियाँ खानी हैं। उसके बाद मन के कहे अनुसार चलें तो वह नियम टूट गया, ऐसा हुआ न? दादाश्री : मन के कहे अनुसार चलना ही नहीं चाहिए। मन का कहा यदि अपने ज्ञान के अनुसार चल रहा हो, तो उतना एडजस्ट कर सकते हैं। अपने ज्ञान के विरुद्ध चले तो बंद कर देना चाहिए। प्रश्नकर्ता : अतः मन के कहे अनुसार चले तो नियम टूट जाता है, ऐसा है न? दादाश्री : रहा ही कहाँ तब नियम? किसी की बात में अपनी होशियारी लगाएँ तो। लेकिन हमें तो ज्ञान के अनुसार चलना है। फिर भी, मन भी नियमवाला है। इसी वजह से तो इस जगत् के लोग बहुत अच्छी तरह से रह सकते हैं। प्रश्नकर्ता : अज्ञानता हो, तब भी अगर नियम तय करे तो एक्ज़ेक्ट उसी तरह चल सकता है न? दादाश्री : वह तय करे कि मुझे नियम से ही चलना है, तब फिर नियम से ही चलेगा। फिर बुद्धि दखल करे तो वैसा ही हो जाता है। गाड़ी नियम में नहीं हो तो क्या होगा? प्रश्नकर्ता : हाँ। व्यवहार उलझ जाएगा सारा। दादाश्री : हमारा मन बहुत कहता है कि यह खाओ, यह खाओ, लेकिन नहीं। वर्ना वश में नहीं रहेगा। देर ही नहीं लगेगी न। लेकिन जिसका हावी हो गया उसे पूरे दिन खिटपिट रहती है। दयनीय स्थिति! 'तू' तो चंद्रेश को रुलानेवाला आदमी है। 'तू' कोई ऐसा-वैसा आदमी है? और फिर यह मन तो चंद्रेश का है, तुझे क्या लेना देना? अब तू है शुद्धात्मा।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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