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विषय विचार परेशान करें तब... (खं-2-४)
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ऐसा सब देख सकता है। बाहर क्रमिक मार्ग में मन की परेशानी
और (मीठी) गोलियाँ खिलानी पड़ती हैं। फिर भी, हमें भी यदि कभी खिलानी पड़ें तो खिला देना।।
इसलिए हम कहते हैं न कि गोलियाँ खिलाकर काम लेना। एक ही चीज़ नहीं जंचती, उसे ऐसा नहीं है। उसे तो सभी बातें, जिसमें टेस्ट आए, उसमें अँचता है!