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________________ १४६ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) प्रश्नकर्ता : नहीं, लेकिन अभी भी अगर विचार आ जाएँ तो हम से वापस अंदर से गड़बड़ भी हो जाती है। दादाश्री : ज्ञान तुरंत हाज़िर हो जाता है न! प्रश्नकर्ता : ज्ञान हाज़िर रहता है लेकिन उस पर थोड़ा विश्वास रखने जाएँ और यह विचार आता है कि 'हमें क्या हर्ज है?' दादाश्री : ऐसा कहता है?! उसे पहचानता नहीं है कि यह कौन कह रहा है? 'वकील बोल रहा है,' ऐसा नहीं जान जाता? प्रश्नकर्ता : अंदर वकील ऐसा कहता है। दादाश्री : इसीलिए तो तुझे मज़ा आ गया न(!) प्रश्नकर्ता : उसका तो नहीं मान सकते। दादाश्री : कभी मानना चाहिए क्या, उस वकील का? तू मानता है? अच्छा लगता है वह ? प्रश्नकर्ता : ऐसा विचार आए न तो तुरंत उखाड़कर फेंक देने चाहिए, इसके बजाय, 'देखते हैं क्या हो रहा है, सिर्फ विचार ही आया है न!' वकील ऐसा बताता है। दादाश्री : तब तो आराम से शादी करवा देगा। तुझे तो हर्ज ही नहीं है, शादी का सिग्नल पड़ गया! प्रश्नकर्ता : नहीं चाहिए ऐसा, लेकिन मन में ऐसा होता है कि दादा ऐसा क्यों कहते होंगे कि 'विचारों को उखाड़कर तुरंत फेंक देना चाहिए?' दादाश्री : वह तेरा माल है न! बढ़ता है विषय की लिंक से वह कहीं भी बैठे हों या फिर नौकरी करते हुए फुरसत मिले तब भी यही करते रहो। ऑफिस में बैठे हुए और फुरसत मिले,
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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