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________________ १३५ विषय विचार परेशान करें तब... (खं-2-४) १३५ जुदापन से जीत सकते हैं दादाश्री : तुझे कैसा रहता है? तेरा ठीक हो जाएगा न? प्रश्नकर्ता : हो जाएगा। दादाश्री : हं। तू तो ऐसा ही कहता है न, “गिर जाएगा, गिर जाएगा', उसी जगह से उगता है और उसी जगह पर ढलता है। वह गिरता नहीं न, वह कहता है, गिर जाएगा सूर्यनारायण ! प्रश्नकर्ता : ये अंदर का ठीक हो जाएगा, चंद्रेश का। दादाश्री : ऐसा। लेकिन शादी करने का कहता है? प्रश्नकर्ता : वैसी गाँठे फूट रही हैं। दादाश्री : उसे कहना कि 'यदि गाँठे फूटेंगी न, तो जब तक हम एक्सेप्ट नहीं करेंगे तब तक तुम्हारा कुछ नहीं चलनेवाला। बेकार में तेरे दिन ही बिगडेगे, चुपचाप बैठा रह न।' बेकार में शादी करना और विधुर होना। शादी करना और विधुर होना, ऐसे करते रहते थे। बैठे रहो न, शादी भी मत करना और विधुर भी मत होना। हम कोई सहायोग नहीं देंगे। प्रश्नकर्ता : यानी कि जब तक मैं दस्तखत नहीं करता, तब तक गाड़ी फर्स्ट क्लास चलती है। दादाश्री : तुम्हें खुद को ही डाँटना पड़ेगा कि कुछ नहीं होगा। इसलिए चुप बैठो न! ऐसे दो-चार प्रकार के प्रयोग सेट कर देना ताकि जुदा रह सको। दादाश्री : तुझे पछतावा नहीं होता, शादी नहीं की उसका? प्रश्नकर्ता : नहीं, ऐसा नहीं है। दादाश्री : तो शादी नहीं की, वह अच्छा लगा तुझे? प्रश्नकर्ता : हाँ, दूसरे लोग जो शादीशुदा हैं, उनका सारा
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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