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________________ १३० समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) दादाश्री : ऐसा? प्रश्नकर्ता : निश्चय स्ट्रोंग हो जाए तो सबकुछ आता ही जाता है। दादाश्री : वह सीक्रेसी मिट गई तो 'ओपन टु स्काई' हो गया। उस गुप्त की वजह से यह सारी सीक्रेसी है। उसके बाद हमारी तरह बोला जा सकेगा, 'नो सीक्रेसी'। जो निरंतर सुख भोग रहे हैं, उनके चेहरे तो देखो?! अरंडी का तेल पीया हो, वैसा दिखता है? और जो नहीं भोगते उनके? प्रश्नकर्ता : निश्चय स्ट्रोंग है और मैंने कोई सीक्रेसी नहीं रखी है। आलोचना में आपके सामने सभी बातें ओपन की हुई दादाश्री : वह सब ठीक है, लेकिन यह ऐसा सब तूफान ढूँढना ही नहीं होता। निश्चय मतलब कुछ भी ढूँढना नहीं होता। अपने आप ही आकर खड़ा रहे। अन्य किसी चीज़ की ज़रूरत ही नहीं है न! आए तो भी क्या और नहीं आए तो भी क्या। तो तू तेरे घर रह, कहना। वह स्थिति नहीं आ जाए, तब तक यहाँ आते रहना है। प्रश्नकर्ता : मुझे ऐसा रहा करता है कि मेरा निश्चय इतना स्ट्रोंग है। ज्ञानीपुरुष के साथ का प्रत्यक्ष संयोग है, आप्तपुत्रों के साथ मैं रहता हूँ। मुझे इसमें बिल्कुल इन्टरेस्ट नहीं है, फिर भी आकर्षण क्यों रहा करता है? दादाश्री : यह जो आकर्षण होता है न, वह पूर्व का हिसाब है इसलिए आकर्षण होता है। उसे तुरंत ही वो (निर्मूल) कर डालना। प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण। दादाश्री : हाँ। वह कहीं अपने निश्चय को तोड़ता नहीं है।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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