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________________ संभालो! इसलिए बचत करो, वीर्य और लक्ष्मी की! भोजन खाकर उसका अर्क बनकर उससे वीर्य बनता है, जो अब्रह्मचर्य से खत्म हो जाता है। इसलिए ब्रह्मचर्य का सेवन करो! जिस ब्रह्मचर्य से मोक्ष हो, वह काम का। यह अक्रम विज्ञान विवाहित लोगों को भी मोक्ष में ले जा सकता है, ऐसा है! जिसे पहले से ही ब्रह्मचर्य पालन करने की भावना हो, उसे दादा से शक्ति माँगनी चाहिए, 'हे दादा भगवान, मुझे ब्रह्मचर्य पालन करने की शक्ति दीजिए।' विषय का विचार आते ही, तत्क्षण ही उसे उखाड़कर फेंक देना चाहिए। किसी भी स्त्री के प्रति दृष्टि नहीं गड़ाना। दृष्टि आकृष्ट हो जाए तो तुरंत ही हटा लेनी चाहिए और शूट ऑन साइट प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए। विषय चाहिए ही नहीं, निरंतर ऐसा निश्चय रहना चाहिए और प्रखर आत्मस्थ ज्ञानीपुरुष की निश्रा में रहकर उसमें से छूटा जा सकता है! हरहाए पशु की तरह जीने के बजाय तो एक कीले से बंधना अच्छा। जगह-जगह दृष्टि नहीं बिगड़नी चाहिए। स्त्री, वह पुरुष का संडास है और पुरुष, वह स्त्री का संडास है। संडास में क्या मोह रखना? ब्रह्मचर्य का निश्चय करते-करते अपने आपको खूब परखकर देखना पड़ता है। कसौटी पर रखना पड़ता है। यदि नहीं हो पाए, ऐसा हो तो शादी करना उत्तम है, लेकिन बाद में भी कंट्रोलपूर्वक होना चाहिए। ब्रह्मचर्य आत्मसुख प्राप्ति में कैसे मदद करता है? बहुत मदद करता है। अब्रह्मचर्य से तो देहबल, मनोबल, बुद्धिबल, अहंकारबल सभी कुछ खत्म हो जाता है ! जबकि ब्रह्मचर्य से पूरा अंत:करण सुदृढ़ हो जाता ब्रह्मचर्य पालन हो सके तो उत्तम है और नहीं हो सके तो अगर सिर्फ इतना जान ले कि अब्रह्मचर्य गलत है, तो भी बहुत हो गया। ब्रह्मचर्य महाव्रत बरता उसे कहते हैं कि जब विषय याद तक नहीं आए, ब्रह्मचर्य या अब्रह्मचर्य का अभिप्राय नहीं रहे, तब वह व्रत बरता कहा जाता है। 17
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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