SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) झुकोगे, तो फिर इस गद्दी पर बैठ जाओ।' तब कहा, 'नहीं। मुझे ऐसी गद्दी नहीं चाहिए। मैं चितौड़ का राणा नहीं झुकूँगा ।' प्रश्नकर्ता : अभी भी प्रकृति परेशान करती है। लेकिन जब अंदर असल में लाल-लाल हो जाता है, तभी दादा का असल अनुभव होता है। दादाश्री : वह तप पूरा करना पड़ेगा। उसके बाद आत्मा का अपार आनंद रहेगा। इस बाड़ को पार किया कि फिर अपार आनंद। विषय के विष की परख क्यों नहीं होती ? प्रश्नकर्ता : तो क्या ऐसा है कि विषय समझ से जाएगा ? जैसे-जैसे समझ बढ़ती जाएगी, वैसे विषय चला जाएगा। दादाश्री : समझ से ही चला जाएगा। यदि ऐसा समझ में आ गया न कि 'यह साँप ज़हरीला है और अगर काट लेगा तो तुरंत मर जाएँगे,' तो फिर वह ज़हरीले नाग से दूर ही रहेगा। उसी तरह इसमें भी समझ में आ जाना चाहिए। प्रश्नकर्ता : हाँ। लेकिन वह समझ में क्यों नहीं आता ? दादाश्री : अनादिकाल से आराधन किया हुआ है न, उसी को सत्य माना है न। प्रश्नकर्ता : वह ठीक है, लेकिन वह आराधन किया हुआ और आज का ज्ञान, उसमें अभी भी क्यों युद्ध चल रहा है ? दादाश्री : विस्तार से सोचने की खुद की शक्ति ही नहीं है न। प्रश्नकर्ता : शक्ति नहीं है या उसकी इच्छा नहीं है ? दादाश्री : नहीं, शक्ति नहीं है। इच्छा तो है पूरी-पूरी।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy