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________________ १२२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) की दूरी की वजह से टकराव होने से रह जाता है न? रास्ते पर गाड़ी-वाड़ियों वगैरह के साथ! प्रश्नकर्ता : वह तो अगर ऐसे होनेवाली हो, तो खुद जल्दी से खिसक जाता है। गाड़ी टकरानेवाली हो, तो खुद जल्दी से खिसक जाता है। दादाश्री : अत: यदि ऐसा सब, तुम्हारा ऐसा निश्चय होगा न तो कुछ भी नहीं होगा। ___जहाँ चोर नीयत, वहाँ नहीं है निश्चय... प्रश्नकर्ता : चोर नीयत होना, वह निश्चय की कमी कहलाएगी? दादाश्री : कमी नहीं कहते, इसमें तो निश्चय ही नहीं है। कमी तो निकल जाती है सारी, लेकिन उसमें तो निश्चय ही नहीं है। प्रश्नकर्ता : लेकिन नीयत यों थोड़ी-थोड़ी चोर होती है या पूरी चोर होती है, ऐसा फर्क होगा न उसमें? । दादाश्री : चोर हुई मतलब पूरी ही चोर। थोड़ी चोर किसलिए? हमें मकान बनाना हो तो पहले से नक्शे में दरवाज़े सुधार लेने चाहिए, दो खिड़कियाँ चाहिए हमें। बाद में चोरी करना, वह क्या अच्छा कहलाएगा? विचार तक भी क्यों आए ज़रा सा? अब्रह्मचर्य का विचार क्यों आना चाहिए? मैंने आपसे क्या कहा है? उगने से पहले उखाड़कर फेंक देना, वर्ना इसके जैसा जोखिम कोई नहीं है। प्रश्नकर्ता : दादा ने एक-दो बार टोका, चोर नीयत के लिए, लेकिन अभी भी बात ठीक से पकड़ में नहीं आ रही है ऐसा दादाश्री : पकड़कर क्या करना है? जैसे-जैसे लातें पड़ेंगी,
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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