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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) करके सिर्फ एक ही विचार पर आ जाना, कि हमें यहाँ से स्टेशन जाना ही है। स्टेशन से गाड़ी में ही बैठना है। हमें बस में नहीं जाना है। तब फिर सभी संयोग वैसे ही मिलते हैं, अगर आपका निश्चय हो तो। निश्चय कच्चा हो तो संयोग नहीं मिलते। प्रश्नकर्ता : हाँ, वह निश्चय कच्चा पड़ जाता है तो फिर एक्चुअल निश्चय के लिए क्या होना चाहिए? क्योंकि यह काल ही ऐसा है कि निश्चय को बदल दे । १२० दादाश्री : वह बदल जाए, तो उसे हमें वापस बदल देना है। वह बदल जाए तो हमें वापस बदल देना है। लेकिन काल वगैरह, वे हम से नहीं जीत सकते, क्योंकि हम पुरुष जाति है। बाकी सारी जातियाँ अलग हैं। अतः ये हम पुरुष जाति को नहीं जीत सकते I प्रश्नकर्ता : लेकिन हम यों बदलते रहें, उससे अच्छा तो अगर एक्ज़ेक्ट समझ लें तो फिर बदलेगा ही नहीं न, निश्चय। दादाश्री : नहीं। समझ लेने की तो बात ही अलग है। बिना समझे कुछ करना ही नहीं होता न ? लेकिन इतनी सारी समझ आनी मुश्किल है, उससे बजाय तो निश्चय लेकर चलना चाहिए । प्रश्नकर्ता : आपने ऐसा कहा है कि यह अब्रह्मचर्य ऐसी चीज़ है कि सिर्फ समझ से ही खत्म हो सकता है। अन्य किसी चीज़ से खत्म नहीं हो सकता। दादाश्री : अगर समझकर हो तो उसे सोचते ही घिन आए ऐसा है। लेकिन घिन नहीं आती और क्यों राग होता है, भाव होता है, उस तरफ का ? क्योंकि अभी भी समझा नहीं है, ठीक से । प्रश्नकर्ता : यानी वह समझ नहीं है, इसलिए उसका निश्चय भी उतना ठीक नहीं है।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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