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________________ दृढ़ निश्चय पहुँचाए पार (खं-2-३) ११३ प्रश्नकर्ता : तो क्या हर एक बात में निश्चय करके रखना है? दादाश्री : निश्चय से ही सभी काम होते हैं। प्रश्नकर्ता : आप यदि निश्चय पर इतना जोर देते हैं, तो फिर वह क्रमिकमार्ग नहीं कहलाएगा? । दादाश्री : नहीं, क्रमिक से लेना-देना नहीं है न! आत्मा प्राप्त होने के बाद क्रमिक कहाँ से आया? क्रमिक तो, अगर आत्मा प्राप्त नहीं किया हो, वहाँ तक के हिस्से को ही क्रमिक कहते हैं। आत्मा प्राप्त करने के बाद क्रमिक रहता ही नहीं। प्रश्नकर्ता : आत्मा प्राप्त करने के बाद क्या निश्चयबल रखना पड़ता है? दादाश्री : खुद को रखना ही नहीं है न?! आपको तो 'चंद्रेश' से कहना है कि 'आप ठीक से निश्चय रखो।' इस बारे में प्रश्न पूछना हो तो वह पोल ढूँढता है। इसलिए ऐसे प्रश्न पूछना हो तब उसे 'चुप' कह देना, 'गेट आउट' कहना ताकि वह चुप हो जाए। 'गेट आउट' कहते ही सबकुछ भाग जाएगा। पुरुषार्थ ही नहीं, लेकिन पराक्रम से पहुँचो दादाश्री : तुझे क्या होता है? प्रश्नकर्ता : दिन में ऐसा एविडेन्स मिले तो विषय की एकाध गाँठ फूट जाती है, लेकिन फिर तुरंत थ्री विज़न सेट कर देता हूँ। दादाश्री : नदी में तो एक ही बार डूबे कि मर जाता है न? या रोज़ रोज़ डूबे तो मरेगा? नदी में अगर एक ही बार डूब मरे तो उसके बाद कोई हर्ज है? नदी को क्या कोई नुकसान होनेवाला है?
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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