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________________ दृढ़ निश्चय पहुँचाए पार (खं-2-३) १११ कि बेटा यदि चला जाएगा तो मेरा नाम लुप्त हो जाएगा। लेकिन अपने में भी पहले भावना की हो, तभी तो 'मुझे ब्रह्मचर्य पालन करना है' ऐसा स्ट्रोंग बोलेगा, वर्ना अंदर डगमगाता रहेगा। क्या होता है? प्रश्नकर्ता : डगमगाता है। दादाश्री : हाँ, डगमगाता है कि ऐसा करूँ या वैसा करूँ।' क्षणभर में विचार बदल जाता है और क्षणभर में विचार आता है। तेरा विचार बदल जाता है क्या कभी? प्रश्नकर्ता : नहीं बदलता। दादाश्री : कितने समय से नहीं बदला है? प्रश्नकर्ता : चार महीनों से। दादाश्री : चार महीने? मतलब अभी यह पौधा बड़ा नहीं कहलाएगा न? उसे तो इतना छोटा सा पौधा कहेंगे। वह तो अगर गाय के पैरों तले आ जाए तो भी दब जाएगा। प्रश्नकर्ता : किसी का ब्रह्मचर्य का निश्चय डगमगाए तो क्या उसकी पहले की भावना ऐसी होगी, इसलिए? दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं। निश्चय ही नहीं है उसका। यह पहले का प्रोजेक्ट नहीं है और यह जो निश्चय किया है, वह लोगों का देखकर किया है। यह सिर्फ देखा-देखी है, इसलिए डगमगाता रहता है, इससे अच्छा तो शादी कर ले ना भाई। क्या नुकसान हो जाएगा? कोई लड़की ठिकाने लगेगी। और जो शादी करता है उसकी ज़िम्मेदारी है न? नहीं करे तो कुछ ज़िम्मेदारी है क्या उसकी? दूसरे ने शादी की हो तो तुझ पर ज़िम्मेदारी आएगी? जितना बोझ उठा सको उतना उठाओ। दो बीवियाँ लानी हों तो दो लाओ। बोझ उठना चाहिए न तुमसे? और बोझ नहीं उठा सको तो यों ही कुंवारे रहो, ब्रह्मचारी रहो, लेकिन ब्रह्मचर्य का
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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