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________________ दृष्टि उखड़े, 'थ्री विज़न' से (खं-2-२) दादाश्री : खाने के साथ मांस रखा हुआ हो तो तुझे खाना भाएगा या नहीं? प्रश्नकर्ता : नहीं भाएगा। दादाश्री : लेकिन अगर वह मांस ढका हुआ हो तो? प्रश्नकर्ता : तो गलती से शायद खा भी जाऊँ। दादाश्री : इस देह पर चादर ढकी हुई है और वह खुला मांस है। प्रश्नकर्ता : वह खुला तो दिखता है, लेकिन यह ढका हुआ है तो नहीं दिखता। दादाश्री : अभी चादर हटा दें तो? प्रश्नकर्ता : मांस आदि सब देखकर घिन आएगी। दादाश्री : और नहीं दिखे तो? प्रश्नकर्ता : तो फिर पता नहीं चलेगा। दादाश्री : ये आँखें कैसी है अपनी, कि हैं फिर भी नहीं दिखता? हम जानते हैं कि यह चादर से बंधा हुआ है फिर भी वह दिखता क्यों नहीं? यों बुद्धि तो कहती है कि है अंदर, फिर भी नहीं दिखता, तो वे कैसी आँखें? यह जो चादर है, इसकी वजह से यह सब सुंदर लगता है। चादर खिसक जाए तो कैसा लगेगा? प्रश्नकर्ता : खून-मांस जैसा। दादाश्री : तो वहाँ घिन नहीं आएगी? प्रश्नकर्ता : आएगी। दादाश्री : किसी को यहाँ पर जल गया हो और पीप निकल रहा हो, तो क्या वहाँ पर हाथ फेरना अच्छा लगेगा?
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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