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________________ ७२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) है? तो फिर क्या परिग्रह अच्छा लगता है? तो सिर्फ विषय में ही ऐसा क्या पड़ा हुआ है कि अच्छा लगता है? प्रश्नकर्ता : बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता, फिर भी आकर्षण हो जाता है। उसका बहुत खेद रहता है। दादाश्री : ऐसे खेद रहेगा, तो वह चला जाएगा। सिर्फ आत्मा ही चाहिए। तो फिर विषय(का भाव) कैसे हो सकता है? अन्य कुछ चाहिए, तभी विषय होगा न? तुझे विषय का पृथक्करण करना आता है? प्रश्नकर्ता : आप बताइए। दादाश्री : पृथक्करण यानी क्या कि विषय क्या ऐसे होते हैं कि इन आँखों को अच्छे लगें? कान सुनें तो अच्छा लगता है? और जीभ से चाटने पर मीठा लगता है? एक भी इन्द्रिय को अच्छा नहीं लगता। इस नाक को तो वास्तव में अच्छा लगता है न? अरे, बहुत खुश्बू आती है न? इत्र लगाया हुआ होता है न? यदि इस तरह पृथक्करण करेंगे, तब पता चलेगा। पूरा नर्क ही वहाँ पर पड़ा हुआ है, लेकिन इस तरह पृथक्करण नहीं करने की वजह से लोग उलझ गए हैं। वहीं पर मोह होता है, वह भी आश्चर्य ही है न! प्रश्नकर्ता : तो वह आकर्षण किस वजह से रहता है? दादाश्री : नासमझी की वजह से। जिस तरह नासमझी की वजह से तार जोइन्ट रह गया हो तो उसका आकर्षण होता रहता है लेकिन अब समझ में आ गया कि यह तो ऐसा है। पहले तो हम सही बात नहीं जानते थे और ऐसा पृथक्करण किया ही नहीं था न! लोगों ने जो माना, उसी को हमने सच माना कि यही सही रास्ता है, लेकिन अब जब से जाना तब से हम समझ गए कि इसमें तो पोलवाला खाता है। इसमें तो ओहोहोहो..... इतने सारे जोखिम हैं कि इसी वजह से तो पूरा संसार खड़ा है और
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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