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________________ किस समझ से विषय में... (खं-2-1) और यह समझने के बाद जोखिमदारी बहुत बढ़ जाती है, इसलिए किसी के सामने आँखें मत गड़ाना। आँखें गड़ाने से ही सबकुछ बिगड़ता है। दृष्टि बिगड़ती है, वह भी एकदम से नहीं बिगड़ती। पहले का हिसाब हो तभी आकर्षण होता है। मूल दृष्टि नहीं बिगड़ती, बिगड़ी हुई दृष्टि ही बिगड़ती है। प्रतिक्रमण के बाद, दंड का उपाय पिछले जन्म में जो गलती हुई थी, उसी वजह से इस जन्म में नज़र पड़ जाती है। हमें नज़र नहीं डालनी हो फिर भी नज़र पड़ जाती है। नज़र पड़ने के बाद हमें आकर्षित नहीं होना हो, फिर भी वापस मन आकर्षित हो जाता है। यानी कि पिछला हिसाब है, इसलिए ऐसा सब हो रहा है। वहाँ पर हमें प्रतिक्रमण करके छूट जाना चाहिए, इसके बावजूद भी अगर वापस नज़र पड़ जाए तो फिर से प्रतिक्रमण करना चाहिए, इस तरह सौ-सौ बार प्रतिक्रमण करेंगे तब छूटा जा सकेगा। कुछ पाँच प्रतिक्रमण से छूट जाती हैं। कुछ एक प्रतिक्रमण से छूट जाती हैं। प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण करने के बावजूद वहाँ चला जाए, तो वह कमज़ोरी ही है न? या फिर नीयत चोर हो जाती है? या फिर अंदर, मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार खुद को ठगने लगे दादाश्री : प्रतिक्रमण करने के बावजूद भी कार्य हो जाए, तब तो फिर वह 'व्यवस्थित' है। वह 'व्यवस्थित' के हाथ में आ गया ऐसा कहा जाएगा, वह व्यवस्थित की गलती है। फिर भी यदि ऐसा बहुत ज़्यादा हो रहा हो, तब उसके लिए खास उपवास वगैरह दंड लेना चाहिए, इसे बींधना कहते हैं। जिस तरह गोली चलाएँ और एक्ज़ेक्ट जगह पर लगे, उसी तरह इसे भी बींधना कहा जाता है। इससे कर्म नहीं बंधते। अतः वापस से यह गलती हो जाए तो वहाँ हमें प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए, साथ-साथ दूसरा
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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