SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किस समझ से विषय में... (खं-2-1) ६१ मिश्रचेतन के विचार आएँ तो उगने ही मत देना। उन्हें तो उखाड़ ही देना, तो एक दिन इससे हल आएगा। वर्ना यदि एक भी उगा तो कितने ही जन्म बिगाड़ देगा। भगवान ने विषय के पौधे को ही उखाड़ देने को कहा है। अन्य पौधे तो भले ही उगें, वे जोखिमवाले नहीं हैं लेकिन मिश्रचेतन जोखिमवाला है। अनादिकाल का अभ्यास है, इसलिए मन वापस यही चिंतवन करता रहता है। उससे वापस विषय का पौधा उगता है। मूंग में पानी डालें तो उग जाता है, वह नीचे जड़ डालेगा। तभी से हम समझ जाते हैं कि यह तो पौधा बनेगा। उसी तरह इसमें विचार आते ही उसे उखाड़कर फेंक देना। सिर्फ यह विषय ही ऐसा है कि छोटा सा पौधा बनने के बाद फिर वह जाता नहीं है। इसीलिए उसे जड़ से ही उखाड़कर खींच निकालना चाहिए। अब यदि ऐसी जागृति रहे तो इंसान आरपार जा सकेगा, वर्ना यह तो अभानता है। यह तो चादर में लिपटा हुआ मांस है। पूरी दुनिया का सारा कचरा इस शरीर में हैं, फिर भी इस चादर की वजह से कितना मोह होता है! वह मोह किस से उत्पन्न होता है? अजागृति से! फिर बाद में पछताना भी पड़ता है न? पछताना यानी क्या? पश्चाताप। पश्चाताप यानी अंदर चुभता रहे। उसके बजाय तो जागृति रहे तो कितना अच्छा! जागृति यदि नहीं रह पाए तो फिर शादी कर। हमें उसमें हर्ज नहीं है। शादी यानी निकाली चीज़। नहीं तो फिर जागृति रखनी पड़ेगी। अभी तक निरी अजागृति ही थी। यह तो उसमें से यह जागृति रखना बाकी रहा। एक सौ आठ दीये हों, उनमें से बारह दीये तो जलाए। बाद में तेरहवाँ, चौदहवाँ ऐसे जलाते जाना। प्रश्नकर्ता : जागृतिपूर्वक भान में होने के बावजूद आकृष्ट हो गए, और अपना वहाँ कुछ चला नहीं, तो क्या करना चाहिए? उसका कितना दोष लगता है? दादाश्री : दोष तो है ही न! वैद्य ने कहा हो कि मिर्च
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy