SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माहात्म्य ब्रह्मचर्य का (खं-1-3) जब एक्ज़ेक्टली ऐसा समझ में आ जाता है तब वह समझ ही क्रियाकारी हो जाती है । फिर वह पोइज़न को छूएगा ही नहीं । अभी उसे इस समझ की एक्ज़ेक्टनेस नहीं आई है। लोगों द्वारा सिखाई गई यह समझ तो लोन की तरह है। ४९ प्रश्नकर्ता : वह समझ क्रियाकारी हो, उसके लिए क्या प्रयत्न करने चाहिए? दादाश्री : मैं आपको विस्तार से समझाता हूँ। फिर वह समझ ही क्रियाकारी हो जाएगी। आपको कुछ भी नहीं करना है। बल्कि आप दखल करने जाओगे तो बिगड़ जाएगा। जो ज्ञान, जो समझ क्रियाकारी हो, वही सही समझ है और वही सही ज्ञान है। मेरी बात आप पर थोपनी नहीं है। खुद आपको आपकी समझ में आना चाहिए। मेरी समझ मेरे पास और वह समझ आप पर थोप नहीं सकते और थोपने से तो कुछ काम होगा ही नहीं । आपमें वह समझ फिट हो जाए और आप अपनी समझ से चलो। इस दुनिया में अगर किसी चीज़ की निंदा करने जैसी हो तो वह है अब्रह्मचर्य । अन्य सभी चीजें इतनी निंदा करने जैसी नहीं हैं। ब्रह्मचर्य का पालन नहीं हो सके तो, वह अलग बात है, लेकिन ब्रह्मचर्य के विरोधी तो होना ही नहीं चाहिए । ब्रह्मचर्य तो सबसे बड़ा साधन है । अपना ब्रह्मचर्य, वह पवित्र चीज़ होनी चाहिए । ब्रह्मचर्य, वह मानसिक चीज़ नहीं है, इस अब्रह्मचर्य का बीड़ी के व्यसन जैसा नहीं है। विषय से संबंधित नासमझी की वजह से ब्रह्मचर्य नहीं टिक पाता । ब्रह्मचर्य के बारे में ज्ञानीपुरुष से यदि समझ ले तो ब्रह्मचर्य बहुत अच्छी तरह टिक सकेगा। समझने की ही ज़रूरत है इसमें । यह व्यसन अलग चीज़ है और अब्रह्मचर्य वह अलग चीज़ है। यह तो अनादि से लोक प्रवाह ऐसा ही चलता आ रहा है और उससे लौकिक ज्ञान खड़ा हो गया है
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy