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________________ यह तो टेम्परेरी सुख हैं और बल्कि कल्पित हैं, माना हुआ है। हर एक आत्मा क्या ढूँढता है? हमेशा के लिए सुख, शाश्वत सुख ढूँढता है। वह ‘इसमें से मिलेगा, इसमें से मिलेगा । यह ले लूँ, ऐसा करूँ, बंगला बनाऊँ तो सुख आएगा, गाड़ी ले लूँ तो सुख मिलेगा', ऐसे करता रहता है। लेकिन कुछ भी नहीं मिलता। बल्कि और अधिक जंजालों में फँस जाता है। सुख खुद के अंदर ही है, आत्मा में ही है । अतः जब आत्मा प्राप्त करता है, तब ही सनातन (सुख) ही प्राप्त होगा । और सुख 'दुःख जगत् में सभी सुख ही ढूँढते हैं लेकिन सुख की परिभाषा ही तय नहीं करते। 'सुख ऐसा होना चाहिए कि जिसके बाद कभी भी दुःख न आए।' ऐसा एक भी सुख इस जगत् में हो, तो ढूँढ निकालो, जाओ शाश्वत सुख तो खुद के 'स्व' में ही है। खुद अनंत सुख धाम है और लोग नाशवंत चीज़ों में सुख ढूँढने निकले हैं। सनातन सुख की खोज जिसे सनातन सुख प्राप्त हो गया, उसे यदि संसार का सुख स्पर्श न करे तो उस आत्मा की मुक्ति हो गई। सनातन सुख, वही मोक्ष है। अन्य किसी मोक्ष का हमें क्या करना है ? हमें सुख चाहिए। आपको सुख अच्छा लगता है या नहीं, वह बताओ मुझे। प्रश्नकर्ता : उसी के लिए तो भटक रहे हैं सभी । दादाश्री : हाँ, लेकिन सुख भी टेम्परेरी नहीं चाहिए। टेम्परेरी अच्छा नहीं लगता। उस सुख के बाद में दुःख आता है, इसलिए वह अच्छा नहीं लगता। यदि सनातन सुख हो तो दुःख आए ही नहीं, ऐसा सुख चाहिए । यदि वैसा सुख मिले तो वही मोक्ष है । मोक्ष का अर्थ क्या है? संसारी दुःखों का अभाव, वही मोक्ष! वर्ना दुःख का अभाव तो किसी को नहीं रहता! I एक तो, बाहर के विज्ञान का अभ्यास तो इस दुनिया के साइन्टिस्ट ३
SR No.030102
Book TitleAatmsakshatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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