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________________ नहीं भाए, फिर भी निभाओ तेरे साथ जो-जो डिसएडजस्ट होने आए, उसके साथ तू एडजस्ट हो जा। दैनिक जीवन में यदि सास-बहू के बीच या देवरानी-जेठानी के बीच डिसएडजस्टमेन्ट होता हो, तो जिसे इस संसारी चक्र से छूटना हो, तो उसे एडजस्ट हो ही जाना चाहिए। पति-पत्नी में से यदि कोई एक व्यक्ति, दरार डाले, तो दूसरे को जोड़ लेना चाहिए, तभी संबंध निभेगा और शांति रहेगी। इस रिलेटिव सत्य में आग्रह, ज़िद करने की ज़रा सी भी ज़रूरत नहीं है। 'इन्सान' तो कौन, कि जो एवरीव्हेर एडजस्टेबल हो। सुधारें या एडजस्ट हो जाएँ? । हर बात में हम सामनेवाले के साथ एडजस्ट हो जाएँ तो कितना सरल हो जाए! हमें साथ में क्या ले जाना है? कोई कहे कि, 'भैया, बीवी को सीधा कर दो।' 'अरे, उसे सीधी करने जाएगा तो तू टेढ़ा हो जाएगा।' इसलिए वाइफ को सीधी करने मत बैठना, जैसी भी हो उसे करेक्ट कहना। आपका उसके साथ हमेशा का साथ हो तो अलग बात है, यह तो एक जन्म के बाद, फिर न जाने कहाँ खो जाएँगे। दोनों के मृत्युकाल अलग, दोनों के कर्म अलग! कुछ लेना भी नहीं -देना भी नहीं! यहाँ से वह किसके वहाँ जाएँगी, उसका क्या ठिकाना ? आप उसे सीधी करो और अगले जनम में जाए किसी और के हिस्से में! इसलिए न तो आप उसे सीधी करो और न ही वह आपको सीधा करे। जैसा भी मिला, वही सोने जैसा। प्रकृति किसी की कभी भी सीधी नहीं हो सकती। कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी ही रहती है। इसलिए आप सावधान होकर चलो। जैसी है वैसी ठीक है, 'एडजस्ट एवरीव्हेर'। टेढ़ों के साथ एडजस्ट हो जाओ ___ व्यवहार तो उसी को कहेंगे कि, एडजस्ट हो जाएँ ताकि पड़ोसी भी कहें कि 'सभी घरों में झगड़े होते हैं, मगर इस घर में झगड़ा नहीं ३४
SR No.030102
Book TitleAatmsakshatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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