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________________ तो निरे कर्म के बोझ बढ़ते ही रहते हैं। वहाँ तो निरी उलझनें ही हैं। हम आपको गारन्टी देते हैं कि जितना समय यहाँ सत्संग में बैठोगे उतने समय तक आपके कामधंधे में कभी भी नुकसान नहीं होगा और लेखा-जोखा निकालोगे तो पता चलेगा कि फायदा ही हुआ है। यह सत्संग, यह क्या कोई ऐसा-वैसा सत्संग है? केवल आत्मा हेतु ही जो समय निकाले उसे संसार में कहाँ से नुकसान होगा? सिर्फ फायदा ही होता है। परन्तु ऐसा समझ में आ जाए, तब काम होगा न? इस सत्संग में बैठे यानी आना यों ही बेकार नहीं जाएगा। यह तो कितना सुंदर काल आया है ! भगवान के समय में सत्संग में जाना हो तो पैदल चलते-चलते जाना पड़ता था! और आज तो बस या ट्रेन में बैठे कि तुरन्त ही सत्संग में आया जा सकता है !! प्रत्यक्ष सत्संग वह सर्वश्रेष्ठ यहाँ बैठे हुए यदि कुछ भी न करो फिर भी अंदर परिवर्तन होता ही रहेगा क्योंकि सत्संग है, सत् अर्थात् आत्मा उसका संग! ये सत् प्रकट हो चुका, तो उनके संग में बैठे हैं। यह अंतिम प्रकार का सत्संग कहलाता है। सत्संग में पड़े रहने से यह सब खाली हो जाएगा क्योंकि साथ में रहने से हमें (ज्ञानी को) देखने से हमारी डायरेक्ट शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, उससे जागृति एकदम बढ़ जाती है ! सत्संग में रह पाएँ ऐसा करना चाहिए। इस' सत्संग का साथ रहा तो काम हो जाएगा। काम निकाल लेना यानी क्या? जितना हो सके उतने अधिक दर्शन करना। जितना हो सके उतना सत्संग में आमने-सामने लाभ ले लेना, प्रत्यक्ष का सत्संग। न हो सके तो उतना खेद रखना अंत में! ज्ञानीपुरुष के दर्शन करना और उनके पास सत्संग में बैठे रहना। १४. दादा की पुस्तक तथा मेगेज़न का महत्व आप्तवाणी, कैसी क्रियाकारी ! यह 'ज्ञानी पुरुष' की वाणी है और फिर ताज़ी है। अभी के पर्याय २८
SR No.030102
Book TitleAatmsakshatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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