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________________ दानांतराय, वीर्यांतराय १८० परमात्म ऐश्वर्य रुका है इच्छा से २०१ किससे टूटते हैं अंतराय कर्म? १८३ अनिश्चय से अंतराय, निश्चय से... २०२ अंतराय कर्म की करके पूजा... १८४ फर्क, निश्चय और इच्छा में २०३ आयुष्य के अंतराय १८५ भोजन में अंतराय पड़ा है... २०५ धर्म में अंतराय १८६ ज्ञानी का निअंतराय पद २०७ सच्चे ज्ञान के प्रति दुर्लक्ष्य... १८७ वैसे-वैसे आत्मवीर्य प्रकट होता.. २०७ [२.६] वेदनीय कर्म शाता-अशाता वेदनीय २१० भगवान महावीर को भी... २१५ दो दुःख का इन्टरवल, वही.. २११ दादा, वेदनीय के उदय के समय २१८ वेदन नहीं करना है, जानना है २१३ तेरे भोगवटे को 'तू' जान २२० बिलीफ वेदना है, ज्ञान वेदना.. २१३ निरालंब को नहीं छूती वेदनीय २२० दादा का अंतर निरीक्षण २१४ [२.७] नामकर्म चित्रगुप्त नहीं, लेकिन नामकर्म...२२२ यश-अपयश नामकर्म २३० शरीर मिला, वह भी नामकर्मसे २२३ यश-अपयश किस आधार पर? २३५ महावीर भगवान का कैसा... २२७ जगत् कल्याण की भावना से... २३७ आदेय-अनादेय नामकर्म २२८ वह था दादा का नामकर्म २३८ [२.८] गोत्रकर्म लोकपूज्य, लोकनिंद्य गोत्र २३९ जो लोकनिंद्य नहीं है, वह... २४२ गोत्र का अंहकार होते ही... २४१ दर्शन से ही बंध गया तीर्थंकर... २४४ [२.९] आयुष्य कर्म देह में बाँधे रखे, वह आयुष्य.. २४५ जगत् का पुण्य कच्चा, इसलिए... २५० शरीर मरता है, 'खुद' नहीं २४६ दादा का आयुष्य पुण्य के आधार पर लंबा या... २४६ आज-कल बढ़े हैं आयुष्य... २५१ कर्म के ताबे में है विल पावर २४७ आठों कर्मों का बंधन प्रतिक्षण २५३ मृत्यु है कर्मों का सार २४७ नियम आयुष्य बंध का २५४ आयुष्य श्वासोच्छ्वास के अधीन २४८ मातृ भाववाले का आयुष्य लंबा २५६ अच्छे लोगों का आयुष्य कम २५० [२.१०] घाती-अघाती कर्म निरंतर विलय रहते हैं द्रव्यकर्म २५८ कषायों से ही कर्मबंधन २७० घाती हैं पट्टियों के रूप में... २५९ अक्रम ज्ञान से एकावतारी पद २७० 89 २५१
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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