SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मज्ञान हो जाने पर फिर छकता नहीं है, केफ नहीं चढ़ता! इफेक्ट में किसी भी तरह की दखल नहीं की जाए, उसी को सहज कहते हैं। दखल करना भ्रांति है। कर्ता पुरुष करता है, ज्ञाता पुरुष उसे निरंतर जानता है। आमने-सामने किसी की किसी में दखलंदाजी नहीं हो, उसी को कहते हैं व्यवहार में सहजात्म स्वरूप। शरीर का स्वभाव है विचलित होना, भाग-दौड़ करना। वह उसका सहज परिणाम है, ज्ञानी को भी देह का असर होता है। अज्ञानी को अहंकार के मारे ऐसा नहीं होता। भगवान महावीर के कान में ग्वाले ने बरू ठोक दिए थे, उस समय उनकी आँखों में करुणा के आँसू थे और निकालते समय वेदना के आँसू थे और बहुत तेज़ चीख भी निकल पड़ी थी! इसे कहते हैं साहजिक। अहंकारी अहंकार से स्थिर रहता है। निरअहंकारी सहज रहता है। अज्ञान दशा में मन के कहे अनुसार चलते हैं, उसे भी साहजिक कहा जाता है। सोचना या मेहनत करना, कुछ भी नहीं। जैसे गाड़ी लुढ़के वैसे लुढ़कने देता है। साहजिक में पुरुषार्थ नहीं रहता, लटू जैसा ही रहता है। जबकि ज्ञान होने के बाद, साहजिक को परमात्मा कहते हैं। भ्रांति जाए, तब से सहज होने लगता है। उसके बाद कर्मबंधन नहीं होता। फिर कारण कार्य रहा ही नहीं। महात्मा कॉज़ेज में सहज और इफेक्ट में असहज हैं। लोग कॉज़ेज में असहज होते हैं। कॉज़ेज में असहज रहने से कर्म चार्ज होते हैं! जो सहज समाधि में रहे, वह भगवान कहलाता है। रोंग बिलीफ से असहज हो गया है यह ! कुछ भी करने से सहज अवस्था प्राप्त नहीं हो सकती। वह तो ज्ञानीपुरुष की कृपा से होता है। 'सहज' और 'करना' इन दोनों में बैर है। नहीं? _ 'जल्दी उठना है' ऐसा सिन्सियर निश्चय रखना, उसके बाद जो हुआ वही सही। 76
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy