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________________ बोझ एक पाव का बन जाता है, और अगर न देखे और कर्ता बने तो डिस्चार्ज बोझ पाँच गुना हो जाता है । डिस्चार्ज कर्म अर्थात् धोने के कपड़े यदि धोए बगैर रह जाएँगे तो फिर से धोने पड़ेंगे, उसके जैसा है ! भारी फोर्सवाले कर्म हों तो शायद ज्ञातादृष्टा न भी रह सके, लेकिन अगर पुरुषार्थ हो तो रह सकता है। एक बार गिर जाए तो फिर से खड़ा हो जाता है और फिर से गिर जाए तो फिर से खड़ा हो जाता है! लेकिन पुरुषार्थ ढीला छोड़ देता है। दादाश्री खुद की जागृति के बारे में बताते हुए कहते हैं, 'एक मिनट के लिए भी हम कभी एक वर्क में नहीं रहते हैं, हर समय हमारे दो वर्क रहते हैं! सिर्फ यह विधि, तब कुछ समय के लिए ही एक वर्क में रहता हूँ।' दो वर्क कौन से? ‘बाहर नहलाते हैं तब मैं अपने ध्यान में रहता हूँ इसलिए ज्ञाता-दृष्टापन रहता है और जो नहलाता है, उनके साथ बातें कर रहा होता हूँ, अर्थात् हमारे तो हर समय दो कार्य रहते हैं ! किसी को ऐसा पता नहीं चलता कि ये दूसरे काम में हैं ।' दादा कहते हैं कि, 'विधि के समय हम ज्ञाता - दृष्टा नहीं रहते। उस घड़ी एक्ज़ेक्ट ज्ञानीपुरुष के रूप में होते हैं, नहीं तो आपका काम फलेगा नहीं न!' विधि के समय खुद ज्ञानीपुरुष की तरह ही रहते हैं, ए. एम. पटेल की तरह नहीं और दादा भगवान तो अपनी जगह पर ही बैठे हुए होते हैं । उस तरफ की हमारी दृष्टि बंद हो जाती है। हमारी दृष्टि उस समय सीमंधर स्वामी में रहती है, दूसरी जगह अर्थात् विधि करने में रहती है। अवस्था में अवस्थित तो अस्वस्थ और 'स्व' में स्थित तो स्वस्थ ! अवस्था विनाशी है, वह अस्वस्थ बनाती है और स्व अविनाशी है, इसलिए स्वस्थ रखता है। स्वस्थ या अस्वस्थ, शुद्धात्मा दोनों को जाननेवाला है। अस्वस्थ, फाइल नं -१ है, उसे ' देखते' रहो। अतः आवरण जितना अधिक होगा अस्वस्थता का समय उतना ही बढ़ जाता है। दृष्टा और दृश्य दोनों अलग ही रहने चाहिए, वह कहलाती है 68
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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