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________________ [5] आत्मा और प्रकृति की सहजता से पूर्णत्व 429 स्टेशन क्या है? तो वह है, आत्मा सहज स्थिति में और देह भी सहज स्थिति में, वही अंतिम स्टेशन है। दोनों अपने-अपने सहज स्वभाव में। प्रश्नकर्ता : कल्पना करनी मुश्किल है उस सहजता की। दादाश्री : हाँ, कल्पना है नहीं है! कल्पना में वह आ नहीं सकता न! कल्पना का जाल, उसकी सरकमफरन्स एरिया (परिधि एरिया) इतना छोटा होता है, जबकि सहजता का तो बहुत बड़ा एरिया है। शक्तियाँ माँगने से जागृति बढ़ती है प्रश्नकर्ता : सहजता की लिमिट कितनी? दादाश्री : निरंतर सहजता ही रहेगी। सहजता रहेगी लेकिन जितनी आज्ञा पालोगे, उतनी सहजता रहेगी। आज्ञा ही धर्म और आज्ञा ही तप है, उतनी मुख्य चीज़ है। हमने क्या कहा है कि यदि आज्ञा पालन करोगे तो हमेशा समाधि रहेगी। गालियाँ दे, चाहे मारे फिर भी सामाधि न जाए, ऐसी समाधि। सुबह-सुबह तय ही करना है कि दादा आपकी आज्ञा में ही रहें ऐसी शक्ति दीजिए। ऐसा तय करने के बाद धीरे-धीरे बढ़ता जाएगा। प्रश्नकर्ता : शुरुआत में ज्ञान लेने के बाद इसी अनुसार करते जाएँ और अपना भाव पक्का होता जाए और वैसे-वैसे फिर और अधिक आज्ञा में रह पाते हैं। दादाश्री : और अधिक रह पाते हैं। अपने ज्ञान में, अक्रम विज्ञान में सामान्य रूप से चौदह साल का कोर्स है। उनमें से भी अगर कोई बहुत कच्चे हों न, तो उन्हें ज़्यादा टाइम लगता है और जो बहुत पक्के हों उन्हें ग्यारह साल में ही हो जाता है। यों निष्ठा बढ़ती जाती है, लेकिन चौदह साल का कोर्स है अपना। चौदह साल में सहज हो जाता है। मन-वचन-काया भी सहज हो जाते हैं, सहज। ____ 'कोई डखोडखल (दखलंदाजी) नहीं करूँ ऐसी शक्ति दीजिए' चरणविधि में ऐसा रोज़ बोलते हैं, इसलिए वह वाक्य लोगों के लिए अच्छा
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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