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________________ [४] ज्ञाता-दृष्टा, ज्ञायक ३८७ जगह पर हो ही नहीं सकता। तीन गाँठे बाँधी हैं तो वे तीनों छोड़नी पड़ेंगी और दो बाँधी होंगी तो दो छोड़नी पड़ेंगी। मैं एक छोड़ दूँ तो चलेगा? प्रश्नकर्ता : नहीं, सभी छोड़नी पड़ेंगी। दादाश्री : यह तो, सिर्फ अक्रम ज्ञानी और सिर्फ महात्माओं के लिए ही ये सभी ज्ञेय हैं, वर्ना जो देखनेवाला है न, उसे ज्ञेय कैसे कहा जा सकता है? प्रश्नकर्ता : ज्ञेय का मतलब ही यह है कि जिसे ज्ञाता देखता है और जानता है। दादाश्री : अन्य लोग तो ऐसा ही कहेंगे कि यही देखनेवाला है न? उसे ज्ञेय कैसे कहा जा सकता है? देखनेवाला है न अंदर, अज्ञान दशा में तो आमने-सामने ऐसा ही कहेंगे न? प्रश्नकर्ता : हाँ, उसी तरह बात करते हैं। मुझे क्या समझना है? हमें जो समझना है उसकी बात है, दूसरों के लिए नहीं है। अज्ञानियों की बात नहीं है यह। मुझे खुद के लिए पूछना है कि मैं क्या समझू ज्ञेय है या ज्ञाता? दादाश्री : हाँ, सामने जो कुछ देखते और जानते हैं, वे सभी ज्ञेय नहीं हैं। उनमें जो रिलेटिव है वह ज्ञेय है और जो रियल है, वह ज्ञाता है। प्रश्नकर्ता : तो क्या इसका अर्थ ऐसा हुआ कि ज्ञाता, ज्ञाता को देखता है? दादाश्री : ऐसा ही अर्थ हुआ साफ-साफ, दीए जैसा, फेक्ट!!! हम पहली और दूसरी आज्ञा में साफ-साफ कह ही देते हैं न कि 'अब तू शुद्धात्मा बन गया है। दूसरों को शुद्धात्मा देख।' ज्ञाता को ज्ञाता नहीं देखें तो हिंसा हो जाती है। अन्य लोग जो हैं वे हिंसावाले हैं। ज्ञेय का मतलब क्या है? जानने योग्य वस्तु। अतः क्रमिक मार्ग में आत्मा जानने योग्य वस्तु है और आपके लिए आत्मा जानी हुई वस्तु है। आपको अब ज्ञेय को जानना है। ज्ञाता को आप जानकर बैठे हो। जबकि उन लोगों के लिए अभी ज्ञाता ही ज्ञेय है। वह ज्ञेय जब ज्ञाता बन
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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