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________________ ३६२ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) दादाश्री : बीच में बिल्कुल अंधकारमय काल आ गया था। अब डेवेलप होने लगा है। अभी अच्छा डेवेलप्ड है। अब इतनी अधिक बारीकी तो इस संसार के लोग समझेंगे नहीं न! संसार के लोग हमें समझेंगे नहीं न कि यह कितना सूक्ष्म विवरण है! भगवान कितनी सूक्ष्मता तक उतरे हैं! प्रश्नकर्ता : दादा, आपने आज बताया, 'देखना और जानना।' यह बहुत अद्भुत है! इसका तो बहुत बड़ा अर्थ निकाला आपने! देखना और जानना, दर्शन और ज्ञान। नई ही चीज़ जानने को मिली है आज। दादाश्री : अद्भुत चीज़ है। प्रश्नकर्ता : बहुत बड़ा स्पष्टीकरण है, दर्शन और ज्ञान क्या है, वह स्पष्ट हो गया। दादाश्री : यह बात ऐसी है कि सिर्फ भगवान ही समझ सकें। बहुत सूक्ष्म खोज की है भगवान ने और भगवान तो अक्लमंद माँ के अक्लमंद बेटे थे! कितनी गहरी समझ है यह! तीर्थंकरों की बात कितनी सुंदर है, आपको ऐसा लगता है न? ज्ञान और दर्शन को स्पष्ट कर दिया है न? वर्ना लोगों को ऐसा आता नहीं है। लोगों को यदि पूछो न तो कुछ भी नहीं, कढ़ी और खिचड़ी, ये दो ही चीजें समझते हैं। कितनी अद्भुत चीज़ है! यह एक चीज़, एक ही शब्द यदि समझ में आ जाए तो कितना काम कर दे। यह आपको समझ में आया? यह तो आपको आपकी ही भाषा में पूरे अर्थ में समझा दिया। इससे भी आगे का अर्थ है, वह हमारे ज्ञान में दिखाई देता है लेकिन स्थूल में भी बुद्धि से समझ में आ सके, ऐसा है कि यह 'कुछ है।' वह ज्ञान तो है ही न लेकिन 'कुछ है' ऐसा किसी भी प्रकार का ज्ञान हुआ है, लेकिन क्या है' वह ज्ञान नहीं हुआ है। अर्थात् डिसाइडेड ज्ञान, वह ज्ञान है और अनडिसाइडेड ज्ञान, वह दर्शन है। कितनी समझदारी की बात है!
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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