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________________ [३.२] दर्शन सामान्य भाव से, ज्ञान विशेष भाव से ३५५ कहेंगे अहमदाबाद में रहता हूँ।' फिर से पूछे कि 'भाई, अहमदाबाद लेकिन कहाँ पर?' तब कहेगा ' हाथी पोल में या फलानी पोल में, ढाल की पोल में।' 'लेकिन ढाल की पोल में कहाँ पर?' तब कहेगा, 'घर नं-१''अरे, लेकिन घर में तो सभी रहते हैं, त किसमें रहता है?' तब वापस सोच में पड़ जाता है कि 'भला यह क्या फिर से?' 'घर में तो पक्षी वगैरह सभी रहते हैं। तू किसमें रहता है?' तब कहता है, 'वह तो मुझे मालूम नहीं है लेकिन मैं तो घर में रहता हूँ बस इतना जानता हूँ।' बस वहाँ पर बुद्धि के दरवाज़े बंद। ‘तो तू किस में रहता है?' प्रश्नकर्ता : खुद के देश में, स्वदेश में। दादाश्री : स्वदेश में! नहीं? तो फिर वहाँ पर मुहल्ला वगैरह कुछ नहीं है न! बाकी सारी जगहें तो मुहल्ले-वुहल्लेवाली, सभी एड्रेसवाली। इनका तो एड्रेस ही नहीं है न? नहाना-धोना कुछ भी नहीं है वहाँ पर? कितनी बार रहता है स्वदेश में? वापस बाहर निकलना पड़ता होगा न थोड़ी देर के लिए! कितनी बार रह पाता है? प्रश्नकर्ता : इसमें जागृति रखनी पड़ती है कि वापस ऐसे बाहर निकल जाता है, वापस अंदर घुस जाना है, ऐसा सब। दादाश्री : लक्षण दिखाई देते हैं बाहर आने के? प्रश्नकर्ता : तुरंत ही दिखाई देते हैं। वह तो पता चल जाता है कि यह बाहर गया। दादाश्री : बाहर कैसे जाएगा? वह अंदर खुद के स्वदेश में रहकर, होम डिपार्टमेन्ट में रहकर देखता रहता है क्योंकि उसमें कहीं भी दीवारें नहीं हैं। इसलिए वहाँ पर रहकर जो विचार आते हैं उन्हें देखता रहता है। इसमें फॉरेन में क्या-क्या हो रहा है, वह सब खुद के रूम में बैठकर देखता रहता है। प्रश्नकर्ता : देखना चूक जाए, उस घड़ी वह कहाँ होता है? होम में ही होता है? दादाश्री : होम में ही होता है।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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