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________________ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) पास रहा। अर्थात् जीवित मन, जीवित वाणी और जीवित अंहकार, ये सब जीवित भाग अर्पण कर दिया है और बाकी आपके पास जो कुछ बचा है, वे फल देने को तैयार हो चुके हैं बस उतने ही बचे हैं आपके पास । ३४० प्रश्नकर्ता : यह मैं पहली बार समझा । द्रव्यकर्म-भावकर्म-नोकर्म आपको सौंप दिए हैं। इसका महत्व मैं पहली बार समझा। दादाश्री : समझ में आया न? आप पहली बार समझे लेकिन कितने तो अभी तक समझे ही नहीं हैं न? आपने अगर सौंपे नहीं होते तो भावकर्म होते रहते और कर्म बंधन होता । प्रश्नकर्ता : आपका कहना सही है लेकिन उसका महत्व अब समझ में आया। दादाश्री : समझ में आना चाहिए। ठीक है । अब यह समझ में फिट नहीं हो गया? प्रश्नकर्ता : ऐसा मालूम है कि अपने में अब भावकर्म नहीं है। दादाश्री : हाँ, वह तो शायद ही किसी महात्मा को समझ में आता है । यों ही चलता है मेरे भाई । बाकी ऐसा समझ में नहीं आता। राम तेरी माया । प्रश्नकर्ता : यह बात समझ में आई तो बहुत बड़ा कल्याण हो गया। दादाश्री : यह बात समझ में आ गई तो हल ही आ गया न ! लेकिन समझ में नहीं आता है न? यह तो अक्रम है इसलिए चलता रहता है। समझ में न आए तो भी चलता रहता है। छोटे बच्चे का भी चलता है न ! जिसे 'मेरा' मानता था, वह सब आपको अर्पण कर दिया। मेरे भावकर्म, मेरे नोकर्म, मेरे द्रव्यकर्म, मेरा मन, मेरा शरीर, मेरा वचन वह सब आपको सौंप दिया । प्रश्नकर्ता : वह तो मैं ऐसा सोचा करता था कि ये सब अर्पण ज़रूर कर देते हैं लेकिन कुछ देते तो हैं ही नहीं। दादाश्री : नहीं। लेकिन उसे अगर समझने के बाद सौंपें तब तो
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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