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________________ ३३६ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) जो रिज़ल्ट आता है, वह द्रव्यकर्म है। दादाश्री : वह ठीक है । लेकिन उस रिज़ल्ट को लोग अपनी भाषा में समझे हैं। रिज़ल्ट यानी वे अगले जन्म के चश्मे हैं और लोग ऐसा समझे हैं कि यहाँ पर जो यह द्रव्य आया है न.... वह भाषा भी है, वह कोई गलत नहीं है, लेकिन ये द्रव्यकर्म वैसे नहीं हैं । द्रव्यकर्म का अर्थ समझ में आ जाए न, तब तो वह बहुत काम निकाल दे। प्रश्नकर्ता : द्रव्यकर्म के बारे में आप क्या कहना चाहते हैं? दादाश्री : इन द्रव्यकर्मों के खत्म हो जाने से आपकी दृष्टि बदल गई या नहीं बदली? प्रश्नकर्ता : हाँ, वह बदल गई । दादाश्री : लेकिन उन्हें द्रव्यकर्म हैं। जो द्रव्यकर्म हैं, वे दृष्टि को सारा उल्टा दिखाते हैं। द्रव्यकर्म के आधार पर दृष्टि उल्टी हो गई है न, उल्टी दृष्टि कि जिसके आधार पर जगत् चल रहा है, जिसके आधार पर भावकर्म बनते हैं। नहीं तो भावकर्म होंगे ही नहीं, यदि द्रव्यकर्म नहीं रहेंगे तो ! द्रव्यकर्म से ही यह दृष्टि है । जो है उससे कुछ विपरीत ही दिखाती है। विपरीत दिखता है, इसलिए विपरीत चलता है फिर । प्रश्नकर्ता : आप यह जो ज्ञान देते हैं, तब हमारे चार्ज होनेवाले कर्म बंद हो जाते हैं, वह इसलिए न कि आप दृष्टि बदल देते हैं ? दादाश्री : उस मूल (उल्टी) दृष्टि के खत्म हो जाने से भावकर्म बंद हो जाते हैं। आत्मज्ञानी और उनके आश्रित ही द्रव्यकर्म को समझ सकते हैं । द्रव्यकर्म अर्थात् जो परिणामित हो चुका है, 'इफेक्ट' कहलाता है वह। भावकर्म और मूल दृष्टि बिगड़ें, तो चार्ज द्रव्यकर्म ऐसी स्थूल चीज़ है ही नहीं कि जो देखी जा सके। जबकि लोग जो दिखाई देते हैं वैसे स्थूल कर्मों में इसे ले जाते हैं और द्रव्यकर्म
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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